मैं भावनाओ में बह जाना चाहता था ,
पता नहीं भावनाओं का बहाव
कब रूद्र से रौद्र हो गया
और मैं बहता गया बहता गया
ठोकरें खाते खाते
किसी पत्थर के बीच
थम गयी मेरी फंसी हुई
बहती हुई भावनाएं
फूल गयी सांस ही नहीं
यह शरीर भी .
साथ चले बहुत से रिश्ते
कुछ दूर रह गए , कुछ दूर हो गए
फिर भी कोई रंज शिकवा नहीं
शायद मेरा मोक्ष
द्वार पर इंतज़ार कर रहा है…
२०२३ की सबसे शानदार कविता
एक अकेला पार्थ खडा है भारत वर्ष बचाने को।सभी विपक्षी साथ खड़े हैं केवल उसे हराने को।।भ्रष्ट दुशासन सूर्पनखा ने माया जाल बिछाया है।भ्रष्टाचारी जितने कुनबे सबने हाथ मिलाया है।।समर…