अंजानो से रिश्ते

अनजाने में ही जुड़ जाते हैं…
कोई हमारे रकीब बन जाते हैं…
बिना देखे ही…
करीब, करीब और करीब आ जाते हैं…
कर्मयुद्ध के तनावों को भूलकर…
ना जाने किसका…
नसीब बन जाते हैं…
तकदीर से…
उनके दिल में…
न जाने कब…
बस जाते हैं…
जिसके कभी…
आने की उम्मीद नहीं…
बेकरारी से उसका…
इंतज़ार.. करते पाए जाते हैं…

Author: Jyotsna Saxena (ज्योत्सना सक्सेना)

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