अहसास

आओ फिर से जिएँ,
सपने को जीवन में बदलने
और जीवन को सपने में !
चलो फिर एक बार लिखे,
खुशबू से भरे भीगे ख़त !
जिन्हें पढ़ते-पढ़ते भीग जाते थे हम,
इंतज़ार करते थे डाकिये का !
बंद कर के दरवाज़ा,
पढ़ते थे चुपके-चुपके !
वे भीगे ख़त तकिए पर सिर रख कर,
चौंकते थे आहट पर !
धड़कते थे दिल टेलिफोन की घंटी पर,
कुछ कहते न बनता था !
झूमता रहता था तन और मन,
मिलते न थे पर जीते थे, एक दूसरे के लिए !
जीने मरने का जज़्बा था, जहाँ दोनों तरफ़ !
प्यार मरता नहीं है
कभी अहसास मरते नहीं कभी !

Author: Rajni Khaitan

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