चंदेरी का ऐतिहासिक जागेश्वरी मंदिर

ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते !!

चंदेरी एक इतिहासों की नगरी है जो की मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले में स्थित है । पूरा चंदेरी शहर तालाब, घने जंगल और खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा हुआ है और इसके अलावा आपको बुंदेला और मालवा राजपूतों के ऐतिहासिक स्मारक और अनगिनत इतिहास जानने को भी मिलेंगे ।

Indore Dil Se -Historical Place
Picture Courtesy : Google

चंदेरी शहर में एक प्राचीन देवी का मंदिर स्थित है जो की माँ जागेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध है । इस मंदिर को चंदेरी के राजा कीर्तिपाल ने बनवाया था । यह मंदिर कीर्ति दुर्ग किले के पास स्थित है इस मंदिर पर पहुंचने के दो रास्ते है – पहला रास्ता किले के सड़क मार्ग से होते हुए सीधे मंदिर तक जाता है , दूसरा रास्ता किले के पास स्थित सीढ़ियों से सीधे नीचे मंदिर तक पहुँचता है । मंदिर में माता जागेश्वरी जी की प्रतिमा है जो की एक खुली गुफा में स्थित है तथा मंदिर में आपको १ शिवलिंग मिलेगा जिसमे आपको ११०० छोटे प्रकार के शिवलिंग मिलेंगे । जागेश्वरी मंदिर का वातावरण एक घने जंगल की तरह है जहाँ आपको प्राकतिक झरने, मीठी-मीठी पक्षियों की आवाज़ और बन्दर देखने को भी मिलेंगे.

 

जागेश्वरी माता मंदिर एक ऐतिहासिक माता मंदिर जिसके पीछे बहुत सारा इतिहास जुड़ा हुआ है तो आइये पढ़ते इस मंदिर के इतिहास के बारे में ।

मंदिर का इतिहास:-

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अगर हम चंदेरी के इतिहास के बारे में बात करे तो यह पता चलता है कि चंदेरी के शाशक राजा कीर्तिपाल थे और ऐसा कहा गया है कि वे कोढ़ की बीमारी से पीड़ित थे । एक बार राजा जब जंगल में शिकार को जा रहे थे तब उन्हें एक तलाब दिखा जिसमे उन्होंने जाके स्नानां किया , स्नान करते ही राजा कीर्तिपाल का कुष्ट रोग ठीक हो गया । जिस तालाब में राजा ने स्नान किया था उसका नाम परमेश्वर तालाब है । राजा कीर्तिपाल का रोग ठीक होते ही राजा भगवान् का धन्यवाद् करने लगे उसी समय वहां एक देवी जी प्रकट हुई और वह बोली वो उनका एक मंदिर बनवाएं जहाँ राजा शिशुपाल यज्ञ करते थे तथा उसके पट १५ दिन तक नहीं खोले , परन्तु राजा जी ने मंदिर बनते ही पट तीसरे ही दिन खुलवा दिए, तब उन्होंने पाया की केवल देवी जी का मुख ही प्रकट हो पाया था पूरी मूर्ति नहीं ।

तभी से माँ जागेश्वरी देवी के नाम पर मेला प्रारम्भ किया गया जो की १५ दिन तक बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है । कुछ वर्षों पहले पशु धन का क्रय विक्रिया किया जाता था इसीलिए इसे पशु मेले के नाम से भी जाना जाता है । यह मेला गणगौर पर्व में आयोजित किया जाता है तथा यह मेला नवरात्री पर्व की शुरुवात भी माना जाता है । यह मेले में राई नृत्य, गणगौर नृत्य, बुंदेलखंडी लोक गीत तथा अन्य लोग कला कृतियाँ के प्रदर्शन भी दिखाई देते है ।

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

लेखक :- स्वीकृति दंडोतिया

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