ढाई अक्षर प्रेम के. . . . .

में कुछ ख्याल बटौर रहा था शब्दों आंगन में, ढाई अक्षर प्रेम के नाम, कुछ लिखने की खातिर | मगर कभी ख्याल खो जाते, कभी शब्द बिखर जाते और मेरी कलम की मुट्ठी खाली की खाली रह जाती | तब याद आया कि प्यार न लिखा जाता है, न किया जाता है, प्यार तो हो जाता है | कभी एक नाम के साथ, कभी एक नाम के खातिर और फिर हम तो न जाने कब से उन ढाई अक्षर को बस नाम के साथ जोड़कर अपना वजुद खोज रहे है | प्रेम को किसी एक परिभाषा में नहीं बांधा जा सकता | उस परमात्मा की तरह यह भी अनंत है, अगम है, अगोचर है, अनादि है और स्रष्टि के कण – कण में व्याप्त है, प्रेम तो एक अनुभुति है जिसे महसूस किया जा सकता है, ह्रदय की धड़कन में संजोकर रखा जा सकता है | परम – ब्रम्हा की तरह अनेक भाव है, जो हमारे रिश्ते नाते में परिलक्षित होते है | वात्यल्य, स्नेह, ममता, प्यार, इश्क, मोहब्बत और न जाने कितने रूप – स्वरूप है इसके, वैसे प्यार को शब्दों के मोतियों में पिरोना आसान नहीं है |  इसके मधुर अहसास को लफजो में बयां करना नामुमकिन ना सही पर मुश्किल जरुर है | और जहा तक मेरे अनुभव की बात है, तो प्यार भावनाओं की मिटटी में आकांक्षाओं की बेल पर खिलने वाला वह पुष्प है जिसे देखा नहीं जा सकता है फिर भी उसकी मंद और भिनी सुगंध हमें और हमारी भावनाओं को मदहोश करती है, और प्यार के पुष्प की पवित्र सुगंध हमारे अन्दर त्याग की भावनाए जागृत करती है प्रेम हदय की कोमल अनुभुति है जहां पवित्रता की खुशबु विचरती है, जहां सब कुछ न्यौछावर कर देने वाला त्याग बसता है |
प्रेम नाम है डुब जाने का खुद को भुल जाने का, त्याग का, समर्पण का, प्रिय का जीवन आनंदमय हो, यही सच्चे प्रेम की सच्ची भावनाए होती है, जो प्रेमी प्रेम में अपना सर्वस्व लुटा देता है पर बदले में कुछ भी नहीं माँगता, वही सच्चा प्रेमी है, मौन समर्पण मुखर प्यार से बहुत अच्छा होता है कहने को आज के युग में ये बातें मुर्खतापुर्ण लगती होगी, पर इन आदर्श सिद्धांतो के बिना प्यार – प्यार न होकर महज स्केंडल बन जाती है ऐसा शगुफा बन कर रह जाती है, जिसकी उम्र महज कुछ महीने या साल होती होगी | जबकि प्यार की दीवानगी की कोई उम्र नहीं, कोई सीमा नहीं होती, यह तो वो जलवा है, जो मोत के बाद भी जिंदा रहता है | पर आज का प्यार तो बस एक मौखोटा भर है, जो कभी वासना के चेहरे पर लगा दिया जाता है, तो कभी स्वार्थ के चेहरे पर कभी मजबुरी को प्यार  का नाम दे दिया जाता है, तो कभी रिश्तों को प्यार का नाम दे दिया जाता है | पर क्या कही भी सच्चा प्यार है ? आत्मा की गहराइयो से निकला आकाश की उचाईयों को छुता हुआ सशक्त, पवित्र, प्रेम कहा है ? आज हम उसे प्यार का नाम भले दे रहे है, लेकिन यह वह नहीं है, जो हीर – रांझा, सलीम – अनारकली और लैला – मजनु ने किया था जो राधा कृष्ण के लिए जीती रही पर प्रेम की मर्यादा निभाने कभी मथुरा तक नहीं गई, वह प्यार आज गायब हो गया है, दो दिन में प्यार का आलम जैसे गुजर गया. . . . ..  की तरह आज का प्यार तो दिखावे का प्यार है, छलावे का प्यार है, डींगे हांकने भर का प्यार है | प्यार के इन्ही उदाहरणों से अपने प्यार की तुलना करके आज के कई नोंजवानो ने प्यार की परिभाषा ही बदल दी है क्या प्यार सिर्फ किसी एक युग या काल से बंधा था, जो आज का युग उस प्यार से वंचित है या फिर आज प्यार के मायने ही बदल गए. . . . . .
मुंबई में अक्सर छात्राओ के चेहरे पर तेज़ाब फेकने की घटनाए घटती है, वो भी सच्चे प्रेमियों द्वारा. . . . . .. प्रेमी ? क्या सचमुच एक प्यार भरा दिल ऐसा अमानवीय काम कर सकता है ? कहते है प्यार अँधा होता है, पर आज का प्यार बहरा और गुंगा भी होता है, बहरा इसलिए की वो प्यार के नाम पर बांटे गए दर्द की चीखे नहीं सुन सकता और गुंगा इसलिए की वो प्यार के नाम पर नफरत देखकर खुद चुप रहता है, खामोश रहता है | यही है इस तथ्य की गहराई इन सबका मतलब न आज के समाज से कोई शिकायत है न गिला, कहना बस इतना है कि प्यार हो तो निभाओ, सच्चे प्यार को सराहो, प्यार प्रतिदिन मिल जाए तो अच्छा, न भी मिले तो प्यार को सीप में मोती की तरह दिल में छुपा लो, उसे नफरत में न बदलो | किसी नगमे की तरह दिल गुनगुना लो, स्वार्थहीन, वासना रहित निश्छल प्रेम करो, प्रेम पवित्र है, पूज्यनीय है | प्यार में अगर राधा की भावना हो और मीरा की आत्मा, तो ऐसे प्यार से कौन बेअसर रह सकता है ? न मनुष्य और न परमात्मा |
नरेश बंसल, इंदौर

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