गारंटी या न्याय : क्या होगी जनता की पसंद

लोकसभा चुनाव की तैयारी के बीच सभी राजनीतिक दल अपने अस्तित्व को प्रभावी बनाने के उद्देश्य को लेकर बयानबाजी कर रहे हैं। इतना ही नहीं विपक्षी राजनीतिक दल केवल वर्तमान सत्ताधारी दल के विरोध पर ही अपना पूरा फोकस करते हुए चुनावी मैदान में हैं। इसके अलावा एक बड़ी बात यह भी है कि भाजपा ने जहां मोदी की गारंटी को प्रमुख हथियार बनाकर अपने मन में विश्वास बनाया है, वहीं अब कांग्रेस भी इसका अनुसरण करने की नीति अपना रही है। भाजपा की ओर से मोदी की गारंटी के बाद कांग्रेस के राहुल गांधी अपनी पार्टी की 25 गारंटी जनता के सामने लाए हैं। इसके साथ ही कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र को न्याय पत्र का नाम देकर एक नई राह बनाने का काम किया है। हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव भी कांग्रेस ने न्याय देने के वादे पर ही लड़ा था, लेकिन अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हुए। हम जानते हैं कि भाजपा ने 2014 के चुनाव में भारत के चाय वालों के साथ गहरा संबंध स्थापित किया था, इसी प्रकार 2019 के चुनाव में कांग्रेस के चौक़ीदार चोर है के जवाब में “मैं भी चौक़ीदार” का नारा देकर गरीब तबके को अपने साथ जोड़ा था। इस चुनाव में मोदी की गारंटी भाजपा का नारा है। कांग्रेस ने भी गारंटी देने का वादा किया है, लेकिन जनता किसकी गारंटी को स्वीकार करती है, यह समय बताएगा।

मैं इस लेख को किसी राजनीतिक दल के समर्थन या विरोध के लिए नहीं लिख रहा हूँ, लेकिन जो सच है उसको लिखने से कोई आशय निकलता है तो भले ही निकले, लेकिन उसे परिवर्तित नहीं किया जा सकता। उल्लेखनीय है कि एक बार पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने कांग्रेस की योजनाओं की नाकामी को स्वीकार करते हुए सार्वजनिक रूप से व्यक्त किया था कि सरकार गरीब जनता तक जो लाभ पहुंचाती है, उसका मात्र 15 प्रतिशत ही पहुँच पाता था। इसका आशय यह भी है कि 85 प्रतिशत राशि या तो कमीशन खोरी में जाता था या प्रशासनिक अव्यवस्था की भेंट चढ़ जाता था। इसका एक अर्थ यह भी निकाला जा सकता है कि कांग्रेस के शासन काल में हर शासकीय योजना भ्रष्टाचार का शिकार हुई। इसके विपरीत वर्तमान केंद्र सरकार में कम से कम इतना तो हुआ ही है कि गरीब तक पहुँचने वाला लाभ बिना किसी बिचौलिए के पात्र व्यक्ति को ही शत प्रतिशत मिल रहा है। यानी अब योजनाएं बिना किसी भ्रष्टाचार के पूरी हो रही हैं। कांग्रेस पार्टी की और से दी जाने वाली गारंटी निश्चित ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं के मनोबल में बढ़ोत्तरी करेगी। क्योंकि अब उनके पास भी जनता के बीच अपनी योजनाएं रखने के लिए मौका है। कांग्रेस के यह बात भी एक संजीवनी का कार्य कर रही है कि उसके नेता राहुल गांधी जनता के बीच जाने के लिए बहुत तेजी से सक्रिय होते जा रहे हैं। लेकिन महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि कांग्रेस को केवल मोदी विरोध की राजनीति से तौबा करना चाहिए, उसे केवल जनता के बीच जाकर अपने वादे बताकर जनता से संबंध बनाने की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए, क्योंकि हर व्यक्ति की अपनी शैली होती है। मोदी की शैली यही है कि वह जनता की भावना के अनुसार ही अपना भाषण देते हैं। इसके अलावा राहुल गांधी कभी कभी पटरी से उतरते दिखाई देते हैं।

कांग्रेस की ओर से जारी किए गए घोषणा पत्र में न्याय देने की बात कही गई है। साथ ही जातिगत जनगणना करने का भी वादा किया गया है। हो सकता है जातिगत जनगणना का वादा कांग्रेस के लिए लाभकारी साबित हो, लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इस मुद्दे पर भारत की पूरी जनता आँख बंद करके समर्थन करने के लिए आगे आ जाए। क्योंकि जो संस्थान या व्यक्ति समाज को एक करने के लिए प्रयास कर रहीं हैं, उनको कांग्रेस का यह वादा न्यायसंगत नहीं लग रहा होगा। यह बात सही है कि आज समाज बदल रहा है। वह जातिगत समाज के बाहर आकर भारतीय समाज यानी एकत्रित समाज होने की दिशा में बढ़ रहा है। ऐसे में यह भी कहा जा सकता है कि कांग्रेस का यह कदम समाज में विभाजन की लकीर खींचने का काम कर सकता है।
इस देश के अनेक चुनावों में यह देखने को मिला है कि विपक्षी दल मेहंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार को घेरने का अभियान सा चलाते थे। इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में मेहंगाई के मुद्दे को उछालकर कांग्रेस की नींद हराम कर दी थी, इसी प्रकार बोफोर्स मामले को मुद्दा बनाकर विपक्ष ने चुनाव लड़ा, जिसमें राजीव गांधी की सरकार को सत्ता से हाथ धोना पड़ा। आज विपक्ष के पास सरकार के विरोध में ऐसा कोई मुद्दा नहीं है, जिस पर सरकार को घेरा जा सके। इसके विपरीत सत्ता पक्ष की ओर से विपक्ष पर ही भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जा रहे हैं। यह राजनीति की दशा और दिशा को बदलने वाला दृश्य कहा जा सकता है। यह पहला चुनाव कहा जा सकता है, जिसमें सत्ता पक्ष विपक्ष को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घर रहा है। विपक्ष के कुछ दल इस मामले में मौन साधे हुए हैं, क्योंकि जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं, वे या उनके साथी उनके साथ हैं। इससे यह भी साफ संकेत जाता है कि भ्रष्टाचार के विरोध में विपक्ष की कोई योजना नहीं है। मोदी सरकार के दस साल के कार्यकाल में एक भी भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है, जबकि विपक्ष पर आज भी आरोप लग रहे हैं। कई तो जमानत पर बाहर हैं।

अब ज़ब लोकसभा चुनाव के मैदान सज गया है, सभी राजनीतिक दल अपने अपने बयानों में पैनापन लाने की क़वायद कर रहे हैं, तब यह तो कहा जा सकता है कि इस बार का चुनाव कई दलों के लिए आरपार की लड़ाई हो गई है। जो राजनीतिक दल सत्ता सुख से लम्बे समय से दूर हैं, वह बेचैन से हो रहे हैं। हालांकि यह भी एक बड़ा सच है कि सत्ता पक्ष को निरंकुश होने से बचाने के लिए मजबूत विपक्ष का होना बहुत आवश्यक है, लेकिन यह भी सत्य है कि विपक्ष को मजबूत करने के लिए सत्ता पक्ष की ओर से प्रयास नहीं किए जाते। इसके लिए स्वयं विपक्ष को ही प्रयास करना होगा। विपक्ष की ओर से यह भी आरोप लगाया जाता है कि केंद्र सरकार विपक्ष को कमजोर कर रही है, ऐसा आरोप लगाना विपक्ष की कमजोरी को ही दर्शाता है। इसलिए विपक्ष को अब एक ताकत के रूप में अपने आपको प्रस्तुत करना होगा।
लेख़क :- सुरेश हिंदुस्तानी, वरिष्ठ पत्रकार

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