मध्यप्रदेश में पांचवीं बार बन रही भाजपा की सरकार में इंदौर से कितने विधायकों को शामिल किया जाएगा? यह प्रश्न आम इंदौरियों के मन में चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद से ही कौंध रहा है। ऐसे में यह जानकर झटका भी लग सकता है कि मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद मात्र 15 विधायकों को ही फिलहाल मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा। इस छोटे मंत्रिमंडल का विस्तार अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के बाद किया जाएगा।
पहली बार इंदौर+महू की 9 सीटों से कांग्रेस का सूपड़ा साफ हुआ है। ऐसे में दो से चार बार जीत चुके विधायकों के समर्थकों को भरोसा है कि भिया मंत्री बन जाएंगे। ऐसे में यक्ष प्रश्न है कि कितने मंत्री बनेंगे? भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय क्षेत्र क्रमांक एक से विजयी हुए हैं। मालवा-निमाड़ क्षेत्र में भाजपा को मिली अधिक सीटों का श्रेय भी उनके खाते में दर्ज है। उनको मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा है। यदि वे सीएम, डिप्टी सीएम या होम मिनिस्टर बनते हैं तो फिर संभव नहीं कि उनके जोड़ीदार रमेश मेंदोला को भी मंत्रिमंडल में स्थान मिल ही जाए। सत्ता संतुलन के लिए शिवराज ही सीएम बनाए जा सकते हैं। साथ में दो उपमुख्यमंत्री बने तो विजयवर्गीय और प्रह्लाद पटेल के नाम तय हैं।
मालवा क्षेत्र से सीएम की रेस में विजयवर्गीय की तरह, ग्वालियर-चंबल संभाग में दिमनी से जीते केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और नरसिंगगढ़ से जीते केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल भी सीएम की रेस में हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया हालांकि पहले से इंकार करते रहे हैं कि वे मुख्यमंत्री की दौड़ में नहीं हैं लेकिन भाजपा नेतृत्व यदि तय कर ले तो उनकी ना भी हां में बदल सकती है।
यदि विजयवर्गीय सीएम की कुर्सी पर बैठाए जाते हैं तो मध्य भारत के पहले मुख्यमंत्री मिश्रीलाल गंगवाल और मप्र के सीएम रहे पीसी सेठी, कैलासनाथ काटजू, वीरेंद्र कुमार सखलेचा, कैलाश जोशी और सुंदरलाल पटवा के बाद वे भी मालवा क्षेत्र से मुख्यमंत्री हो सकते हैं। विजयवर्गीय के सीएम बनने की स्थिति में बहुत संभव है कि इंदौर से फिर किसी विधायक को शायद ही मौका मिले। ऐसी स्थिति में विपरीत परिस्थितियों में महू से दूसरी बार जीतीं उषा ठाकुर को मंत्रिमंडल में गृहमंत्री जैसा महत्वपूर्ण विभाग सौंपा जा सकता है। वे संघ की पसंद हैं। पिछली बार उन्हें संस्कृति-पयर्टन मंत्रालय भी संघ के निर्देश पर मिला था।
यदि लोकसभा चुनाव तक शिवराज सिंह चौहान को ही मुख्यमंत्री बनाए रखना पार्टी नेतृत्व तय कर ले तो उनके नाम सतत पांच बार मुख्यमंत्री रहने का कीर्तिमान बन सकता है। भाजपा में वे ऐसे पहले सीएम हो जाएंगे, लेकिन यह असंभव इसलिए भी हो सकता है कि नरेंद्र मोदी गुजरात के चार बार ही सीएम रहे हैं।
शिवराज को ही सीएम बनाना अनिवार्यता हो जाने की स्थिति में विजयवर्गीय के लिए उतना ही पॉवरफुल पद तय करना नेतृत्व की मजबूरी इसलिए भी हो जाएगी क्योंकि शिवराज और कैलाश में घनघोर मतभेद से बड़े नेता भी वाकिफ हैं। तब भाजपा मप्र में डिप्टी सीएम का पद सृजित कर विजयवर्गीय को नंबर टू का दर्जा दे सकती है या उन्हें गृहमंत्री भी बना सकती है।
शिवराज का बेहतर विकल्प नरेंद्र सिंह तोमर भी हो सकते हैं। उनका प्रदेश के सभी क्षत्रपों से समन्वय भी है लेकिन चुनाव के चलते करोड़ों के लेनदेन वाले वॉयरल हुए उनके बेटे के वीडियो भाजपा को आईना दिखा रहे हैं। केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल भी सीएम पद के दावेदार हैं। उन्हें प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का दायित्व देकर समझाया जा सकता है या डिप्टी सीएम भी बनाया जा सकता है।इस तरह लोधी समाज के सम्मान के साथ उमा भारती को भी संतुष्ट किया जा सकता है। प्रदेश में आदिवासी चेहरे के रूप में फग्गन सिंह कुलस्ते के मन में भी लंबे समय से सीएम वाले लड्डू फूटते रहे हैं किंतु वे विधानसभा चुनाव हार चुके हैं।
अब बात करें मंत्रिमंडल में इंदौर के प्रतिनिधित्व की तो पहला दावा तो क्षेत्र क्रमांक दो के विधायक रमेश मेंदोला का ही बनता है। प्रदेश में सतत दूसरी बार सर्वाधिक मतों से जीतने वाले मेंदोला बीते 18 सालों में मंत्रिमंडल में इसलिए स्थान नहीं पा सके कि वो विजयवर्गीय के जोड़ीदार रहे हैं। अब उनकी राह में खुद विजयवर्गीय रोड़ा बन सकते हैं। मंत्रिमंडल में विजयवर्गीय को दमदार विभाग मिलना तय है। ऐसे में उनके जोड़ीदार को भी मंत्री बनाकर नेतृत्व इंदौर की राजनीति में किसी एक खेमे को पॉवरफुल दर्शाने का रिस्क नहीं लेना चाहेगा और न ही विजयवर्गीय ऐसा त्याग करेंगे कि वो अपने बदले मेंदोला को मौका देने का अनुरोध करें।
अन्य विधायकों में पहली बार जीते मधु वर्मा, गोलू शुक्ला को शायद ही मौका मिले। देपालपुर विधायक मनोज पटेल शिवराज सिंह की आंखों के तारे जरूर हैं किंतु कौन मंत्री बनाया जाए यह फ्री हैंड उन्हें नहीं मिलना है।
सिंधिया चाहेंगे कि सांवेर से जीते उनके लाड़ले तुलसी सिलावट को इस बार भी मंत्री पद मिल जाए लेकिन जल संसाधन मंत्री के रूप में सिलावट के कार्यकाल-पुत्र के कार्य व्यवहार की महीन समीक्षा के बाद ही नेतृत्व फैसला करेगा।
महू से विधायक उषा ठाकुर के लिए संघ का दबाव रहेगा। उन्हें प्रभावी विभाग देकर इंदौर और धार जिले में संतुलन बैठाया जा सकता है। इंदौर की पूर्व महापौर मालिनी गौड़ जिले में सर्वाधिक मतों से जीतने वाली रही हैं। उनका दावा भी मजबूत है, शिवराज की सिफारिश कितनी प्रभावी रहेगी। वैसे भी दो नंबर और चार नंबर के बीच जो कटाछनी चलती रहती है वो भी मंत्रिमंडल में उनके चयन में मददगार हो सकती है। उनके साथ प्लस पॉइंट यह भी है कि क्षेत्र क्रमांक चार से सतत तीन बार उनके पति लक्ष्मण सिंह गौड़ विधायक रहे। उनके निधन बाद मालिनी गौड़ (2008 से 2023) चार बार विधायक हैं। महापौर के पांच वर्षीय कार्यकाल के दौरान ही इंदौर को स्वच्छता सर्वेक्षण में देश में नंबर वन रहने का सिलसिला शुरू हुआ था।
क्षेत्र क्रमांक पांच से बाबा महेंद्र हार्डिया की जीत उतनी ही हतप्रभ करने वाली है जितनी तीन नंबर से कांग्रेस के दीपक जोशी पिंटू की हार। हार्डिया पांचवीं बार इस क्षेत्र से जीते हैं। एक बार शिवराज मंत्रिमंडल में रह चुके हार्डिया को इस बार मौका संघ की सिफारिश पर निर्भर करेगा। चुनाव लड़ने से अनिच्छा जाहिर कर चुके हार्डिया की जीत संघ की ही वजह से संभव हुई है।
राऊ से विधायक मधु वर्मा पहली बार विधानसभा में पहुंचे हैं लेकिन इससे पहले इंदौर विकास प्राधिकरण अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल उल्लेखनीय रहा है। जिस जिले में रेकॉर्ड मतों से जीतने, सतत चार-पांच बार जीतने वाले विधायक हों ऐसे में नहीं लगता कि पहली बार जीते मधु वर्मा या गोलू शुक्ला को मंत्रिमंडल में जगह मिल ही जाए। गोलू शुक्ला अभी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रहे हैं। इस चुनाव में तय माना जा रहा था शुक्ला परिवार से एक विधायक बनना तय है तो संजय की जगह गोलू शुक्ला जीते हैं।
इसी तरह से चुनाव के दौरान यह मजाक भी खूब चला था कि एक नंबर से जीतेगा तो आकाश का पापा ही क्योंकि कैलाश विजयवर्गीय के पुत्र आकाश की तरह संजय शुक्ला के पुत्र का नाम भी आकाश है।
तो स्वाति काशिद होती तीन नंबर से विधायक
भाजपा जब क्षेत्र क्रमांक तीन से प्रत्याशी तलाश रही थी तब स्वाति युवराज काशिद का नाम भी विजयवर्गीय ने आगे बढ़ाया था।इससे पहले नगर निगम चुनाव के वक्त भी भाजपा ने स्वाति काशिद को पार्षद का टिकट दिया था लेकिन अन्यान्य कारणों से विरोध होने पर उनकी जगह अन्य को टिकट दिया गया था। क्षेत्र क्रमांक तीन से उनके नाम पर विचार किए जाने पर स्वाति काशिद ने इंकार करने के साथ ही सामाजिक क्षेत्र में ही कार्य करने की इच्छा जाहिर की थी। इसके बाद विजयवर्गीय ने गोलू शुक्ला का न सिर्फ नाम आगे बढ़ाया बल्कि इस क्षेत्र के व्यापारिक संगठनों के साथ निरंतर बैठकें कर उन्हें गारंटी दी कि न तो क्षेत्र में गुंडागर्दी होने देंगे और न ही अवैध वसूली।
लेखक :- कीर्ति राणा