एक बार अर्जुन भगवान शिव की तपस्या करने हिमालय के जंगलों में चले गए और शिव की घोर तपस्या में मग्न हो गए। उनकी तपस्या से शिव प्रसन्न हुए और वरदान स्वरूप उसे पाशुपत नामक अस्त्र दिया।
देवराज इंद्र स्वयं अमरावती से उनके पास पहुंचे और उन्हें अपने साथ अमरावती ले गए। अर्जुन की अनुपस्थिति में युधिष्ठिर अपने शेष भाइयों तथा द्रौपदी सहित बद्रिका आश्रम पहुंचे और वहीं रहने लगे।
एक दिन वायु के प्रबल झोंके से उड़कर हिम सरोवर में उगने वाला ब्रह्म कमल का पुष्प ऊपर से उड़कर पांडवों के समीप गिर पड़ा। द्रौपदी ने पुष्प उठाया और भीम को देते हुए अनुराग भरे स्वर में बोली – “आर्यपुत्र! ऐसा अद्भुता पुष्प मैंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा। क्या आप मेरे लिए इस जैसा दूसरा पुष्प ला सकते हैं? मैं दोनों पुष्पों से अपनी बेली सजाऊंगी।”
भीम ने अपने बड़े भाई युधिष्ठिर की ओर देखा और आंखों से संकेत पाकर द्रौपदी से बोला – “हां, हां क्यों नहीं। मैं तुम्हारे लिए इस पुष्प का जोड़ा अवश्य लाऊंगा पांचाली! चाहे वह मुझे किसी भी जगह क्यों न मिले।”
द्रौपदी भीम की बात सुनकर प्रसन्न हुई। वह प्रसन्न मुद्रा में भीम से बोली – “तो फिर ला दीजिए न आर्यपुत्र! इस पुष्प को तभी मैं वेणी में लगाऊंगी, जब इस जैसा दूसरा पुष्प आ जाएगा।”
भीम ने अपनी गदा उठाई और ब्रह्म कमल लाने उत्तर दिशा की ओर चल पड़ा। वह भयंकर गर्जना करते हुए आगे बढ़ने लगा। उसकी हुंकार से वन के प्राणी भयभीत होकर इधर-उधर भागने लगे।
यह देखकर हनुमान जी चिंतित हो उठे वे उन दिनों वहीं विश्राम कर रहे थे उन्होंने सोचा – ‘भीम का भी जन्म पवनदेव के वरदान से हुआ है। इसलिए वह मेरा छोटा भाई है। जिस वेग, हुंकार, गर्जना से वन प्रदेश को कंपाता वह आगे बढ़ रहा है, इससे उसके प्राणों को संकट हो सकता है। उसे नहीं मालूम है कि उसकी गर्जना से बर्फ की चोटियों पर जमी बर्फ टूट-टूटकर नीचे गिरेगी और उसके प्राणों पर आन बनेगी।’
यह सोचकर हनुमान अपने स्थान से उठकर बूढ़े का वेश बनाए भीम के मार्ग में आकर लेट गए। अपने आकार और विशाल पूंछ से उन्होंने भीम का मार्ग रोक दिया। भीम हनुमान जी के निकट पहुंचा और अपना मार्ग अवरुद्ध देखकर ठिठक गया। फिर वह हनुमान से बोला – “मेरे मार्ग से हटो वानर! तुम तो सारा मार्ग घेरकर राह में लेट गए हो।”
हनुमान जी ने अपना सिर घुमाया और भीम की ओर देखते हुए कहा – “मैं रोगी हूं युवक! यहां कुछ देर पड़ा विश्राम कर रहा था। तुमने मुझे नींद से क्यों जगा दिया?”
भीम गुस्से से बोला – “विश्राम ही करना है तो मार्ग से हटकर किसी सुरक्षित स्थान पर जाकर करो। बीच मार्ग में लेटकर विश्राम करना कौन-सी बुद्धिमानी है।”
हनुमान जी बोले – “मैंने तुम्हें बताया तो है कि मैं अस्वस्थ हूं। अपनी जगह से हिल सकने में भी अशक्त हूं।पर तुम कौन हो युवक और इस सुनसान जगह में किसलिए विचरण कर रहे हो?”
भीम बोला – “मैं कोई भी हूं, तुम्हें इससे क्या मतलब? मुझे आगे बढ़ना है, तुम मेरे मार्ग से हट जाओ!”
हनुमान जी बोले – “कैसे हटूं भैया? शरीर में तो शक्ति नहीं है, हिलने-डुलने की।”
भीम बोला – “तो फिर मैं आगे कैसे बढूंगा! तुम्हें लांघकर जाने से मुझे पाप लग जाएगा।”
हनुमान जी बोले – “पाप लगने जैसी कोई बात नहीं है। तुम मेरी पूंछ को थोड़ा एक ओर खिसका दो और मार्ग बनाकर निकल जाओ।”
भीम ने झुककर एक हाथ से हनुमान जी की पूंछ पकड़कर एक ओर रख देना चाहा, किंतु पूंछ अपने स्थान से हिली तक नहीं। फिर उसने अपने दोनों हाथों से पूंछ पकड़कर उठानी आरंभ कर दी। किंतु पूंछ तो जैसे जमीन से चिपट गई थी। भीम के पूरी शक्ति लगाने पर भी वह रंचमात्र भी न हिली। भीम का सारा जिस्म पसीने से सराबोर हो गया। आखिर थक-हारकर भीम उठ खड़ा हुआ और विवश स्वर में बोला – “वानरराज! आपकी पूंछ मुझसे नहीं उठती। मैं अपनी हार स्वीकार करता हूं, लेकिन मुझे अपना सही परिचय दीजिए आप साधारण वानर प्रतीत नहीं होते।”
हनुमान जी बोले – “तुम ठीक समझे भीम मैं पवनसुत हनुमान हूं। भगवान राम का एक तुच्छ सेवक।”
हनुमान जी का नाम सुनते ही भीम उनके चरणों में गिरकर बोला – “क्षमा कीजिए पवनपुत्र! मैं आपको पहचान नहीं पाया था। मैंने आपको कोई साधारण वानर समझ लिया था।”
हनुमान जी खड़े हुए उन्होंने भीम को अपने गले से लगा लिया और बोले – “मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था भीम! तुम वास्तव में बली हो, लेकिन तुम्हें अपने बल का अहंकार हो गया था। इसलिए इस अहंकार का दमन मेरे लिए आवश्यक हो गया था।”
भीम बोला – “अहंकार तो आपको देखते ही कभी का समाप्त हो चुका है पवनपुत्र! आपके दर्शन पाकर मैं कृतार्थ हो गया।”
हनुमान जी बोले – “इस निर्जन हिम भरे प्रदेश में किधर जा रहे हो भीम? यह मार्ग तो बहुत संकटो से भरा है।”
भीम बोला – “संकटो से तो खेलने में मुझे आनंद आता है पवनपुत्र! बचपन से अब तक मैं संकटो से ही तो खेलता आया हूं। लेकिन इस बार मैं एक कार्य हेतु आया हूं। द्रौपदी की ऐसी इच्छा थी कि मैं इस ब्रह्म कमल के जैसा दूसरा पुष्प भी उसे ला दूं”
ब्रह्म कमल की बात सुनकर हनुमान जी गंभीर होकर बोले – “भीम! ब्रह्म कमल नामक वह पुष्प आगे एक सरोवर में पैदा होता है और उस सरोवर की रक्षा यक्ष करते हैं। यक्ष देवराज इंद्र के सेवक होते हैं। पुष्प लेने के लिए तुम्हें यक्षों से युद्ध भी करना पड़ सकता है।”
भीम बोला – “अपने वचन की रक्षा के लिए मैं यक्षों से तो क्या देवराज इंद्र से भी भीड़ सकता हूं। मुझे तो फिर आपका आशीर्वाद चाहिए पवनपुत्र!”
हनुमान जी ने भीम को आशीर्वाद दिया और पद्म सरोवर जाने का मार्ग बता दिया बोले – “कुछ आगे जाने पर तुम्हें सरोवर मिल जाएगा, जहां ये पुष्प होते हैं। यक्ष अगर पुष्प तोड़ने में बाधा डालें तो उन्हें मेरा नाम बता देना। वे सहर्ष पुष्प ले जाने देंगे।”
यह कहकर हनुमान जी अंतर्ध्यानहो गए और भीम मुदित मन से सरोवर जाने वाले मार्ग पर आगे बढ़ गया। सरोवर पर पहुंचकर उसने कुछ पुष्प चुने। यक्षों ने सहर्ष उन्हें पुष्प चुनने में मदद की और फिर पुष्प लेकर भीम वापस लौट पड़ा और पुष्प लेकर द्रौपदी को दे दिया। द्रौपदी ने प्रसन्न भाव से उस पुष्प को अपनी वेणी में सजाना आरंभ कर दिया..!!