पत्थरों को पूजते पूजते अब तक रे मन..
क्यों नही पत्थर हुआ तू रे…
जग की विद्रूप हंसी के सम्मुख…
व्यंग बाणों के आमुख…
क्यों नही पत्थर हुआ तू रे…
क्यों अलापता बेसुरे राग रे मन…
क्यों सिसकता बंद पंछी सा रे मन…
क्यों नही पत्थर हुआ तू रे…
हिमखंड सा कतरा कतरा पिघलता रे मन…
क्यों नही पत्थर हुआ तू रे…
Author: Jyotsna Saxena (ज्योत्सना सक्सेना)