यह बिटिया प्यारी-सी
लेकर जो खिलौना हाथ में
एक सुन्दर-सा,,,,
टहल रही है
मेरे घर-आँगन के उपवन में ,
ज्यों थिरक रही हो कोई कलिका
मंद हवा के झोंकों से
किसी पौध की डाली में.
होती है बिटिया घर-आँगन में
झोंका एक अल्हड मस्त हवा का भी ….
होकर स्फूर्त महकता रहता है जिससे मन
जीवन भी उठता है थिरक-थिरक.
होती है बिटिया
निश्छल प्रेम की अनुगामी
गुनगुनाती रहती है कोई गीत
मन में अपने होकर आत्मलीन-सी
जब होता है हाथों में उसके
कोई खिलौना, छोटा किन्तु अनमोल !
देखता हूँ जब-जब भी ‘यह’ बिटिया
याद आती है तब-तब ‘वह’ बिटिया
जो सुन्दर थी ऐसी ही
मचलती भी थी आने के लिए
गोद में मेरी …..?
टहल रही है घर-आँगन में
यह प्यारी-सी छोटी-सी बिटिया
लेकर एक खिलौना सुन्दर-सा
अपने छोटे-छोटे हाथों में . . . . .
Author : Dr. Surendra Yadav ( डॉ. सुरेन्द्र यादव )