पुकारती है निर्भया लोकतंत्र के अपने उन अधिकारों को
कहना चाहती दर्द वो अपना सत्ता के भेड़िए नेताओ को
नोच नोच कर खाने वाले बलात्कारी नरभक्षी हेवानो को
चुप क्यों हो जाता प्रशासन सारा सुनकर हत्यारो के नारों को
मालूम नही था परिवार को भी धमकियां डराएगी साथ में
खत्म हो जाती हैं आस जब प्रशासन ही बिक गया हाथ में
आंसू बहाता रोता वो परिवार दम तोड देता दुख की बात में
सिमट जाती भीड़ चंद मिनटों में जब रुपया न हो पास में
केसे दर्द सहता वो पिता जिसने जीवन बैठी में देखा था
पढ़ा लिखाकर बेटी को अपनी खुशियों में पलते देखा था
दर्द से चीख पड़ी मां उसकी जब बेटी को कफन में देखा था
दुःख इतना सहकर भी मेने उसको आस बंधाते देखा था
तारिक पर तारिक दी जाती हैं जब बलात्कार हो जाता है
न्याय मांगता परिवार पर न्याय न उसको मिल पाता है
रोती हुई आत्मा कहती जब अपराधी को छोड़ा जाता है
सबूत मिटाकर अपराधी को खुलेआम गुमाया जाता है
चीख रही है भारत माता बेटी को न्याय नही क्यों मिल पाया
लज्जित होती संसद दिल्ली की कानून कोई संभाल नही पाया
विश्व गुरु हे भारत अपना ‘मेरोठा’ की बात कोई समझ न पाया
हे महान भारत की नारी ये सनातन धर्म में अनेक बार समझाया
देश में बढ़ते अपराध को रोकने के लिए बलात्कारीयो पर कड़ा कानून बनाए… कविता के माध्यम से आवाज…
साभार :- ओ. पी. मेरोठा (कवि)