ऐषु धर्म: सनातनः

सनातन धर्म विश्व का पहला व सबसे प्राचीन धर्म है। कुछ के मतानुसार यह धर्म नहीं अपितु जीवन जीने का एक साधन है। सनातन धर्म में विभिन्न देवी देवताओं की पूजा होती है और सभी देवता प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रकृति से जुड़े होते है।

सनातन धर्म वास्तव में प्रकृति के विभिन्न रूपों की पूजा करने की शिक्षा देता है जो अन्य किसी धर्म में नहीं है। इसलिए हम सनातन धर्म को विज्ञान पर आधारित धर्म कहते है। अतः प्रस्तुत है वह कारण जिनसे पता चलता है कि हमारी परम्पराएँ व हमारा धर्म पूर्णत: विज्ञान पर आधारित है जिसमे अवैज्ञानिक कुछ नहीं है।

जनेऊ धारण करना-
जनेऊ शरीर के लिए एक्युप्रेशर का काम करता है जिससे कई प्रकार की बीमारियाँ कम होती है। लघु शंका के समय जनेऊ को कान पर लगा लिया जाता है जिससे लीवर और मूत्र सम्बन्धी रोग विकार दूर होते है।

मन्त्र-
मन्त्र भारतीय संस्कृत का अभिन्न अंग है जिसे हम पूजा पाठ व यज्ञ आदि के समय प्रयोग करते है। कई मंत्रो से मष्तिष्क शांत होता है जिससे तनाव से मुक्ति मिलती है वही ब्लडप्रेशर नियंत्रण में भी मंत्रो का प्रयोग किया जाता है।

शंख बजाना-
प्रत्येक धार्मिक कार्यो पर शंख बजाते है जो सनातन संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है। शंख बजाने से जो ध्वनि निकलती है उससे सभी हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जाते है। शंख मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों को भी दूर रखता है साथ ही यह कर्ण सम्बन्धी रोगों से बचाता है। शंख बजाने से श्वास सम्बन्धी रोग भी समाप्त हो जाते है।

तिलक लगाना-
माथे के बीच में दोनों आँखों के बीच के भाग को नर्व पॉइंट बताया जाता है जिस कारण यहाँ पर तिलक लगाने से अध्यात्मिक शक्ति का संचार होता है। इससे किसी वस्तु पर ध्यान केन्द्रित करने की शक्ति बढती है। साथ ही यह मष्तिष्क में रक्त की आपूर्ति को नियंत्रण में रखता है।

तुलसी पूजन-
सनातन धर्म में तुलसी को बहुत ही पवित्र माना जाता है जिसका अपना वैज्ञानिक कारण है। तुलसी अपने आप में एक उत्तम ओषधि है जो कई प्रकार की बीमारियों से छुटकारा दिलाती है। खांसी, जुकाम और बुखार में तुलसी एक अचूक रामबाण है। तुलसी लगाने से कई हानिकारक जीवाणु और मच्छर आदि दूर रहते है।

पीपल की पूजा-
वैज्ञानिको प्रयोगों से सिद्ध हो चुका है कि पूरी पृथ्वी पर एकमात्र पीपल का पेड़ ही २४घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है। जिस कारण से पीपल का महत्व और भी बढ़ जाता है। इसलिए आज भी पीपल को सींच कर उसकी परिक्रमा की जाती है। पीपल के पत्ते हृदयरोग की ओषधि में भी प्रयोग होते है।

शिखा रखना-
आयुर्वेद के प्रसिद्ध आचार्य सुश्रुत के अनुसार, सिर का पिछला उपरी भाग संवेदनशील कोशिका का समूह है जिसकी सुरक्षा के लिए शिखा रखने का नियम होता है। योग क्रिया अनुसार इस भाग में कुण्डलिनी जागरण का सातवाँ चक्र होता है जिसकी ऊर्जा शिखा रखने से एकत्रित हो जाती है।

गोमूत्र व गाय का गोबर-
गाय के मूत्र को सनातन धर्म में पवित्र माना जाता है क्योंकि गौमूत्र कई भंयकर बीमारियों में रामबाण है। मोटापे के शिकार लोगों के लिए गौमूत्र एक अचूक दवा है साथ ही यह हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट कर देता है। गाय के गोबर का लेप करने से कई हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाते है इसलिए पुराने समय में घरो में गोबर से घरो के फर्श लिपे जाते थे।

योग व् प्राणायाम-
योग व प्राणायाम का लाभ किसी से छुपा नहीं है। योग व प्राणायाम का अविष्कार भारत के ऋषि मुनियों द्वारा समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए किया गया है। योग से स्ट्रेस व हाइपरटेंशन से मुक्ति मिलती है। मोटापे से लेकर कई जटिल बीमारियों में योग व प्राणायाम लाभकारी है। प्रतिदिन का प्राणायाम श्वास सम्बन्धी सभी रोगों से मुक्ति दिलाता है।

हल्दी का प्रयोग-
हल्दी अपने आप में एक उत्तम एंटीबायोटिक है जिसका प्रयोग दुनिया के कई देश कर चुके है और ये सिद्ध कर चुके है की कैंसर जैसे भयंकर रोगों के उपचार में हल्दी एक अचूक औषधि है। हल्दी एक सौन्दर्यवर्धक औषधि भी है जिसका प्रयोग मुहं के दाग धब्बे हटाने व शरीर का रूप निखारने में किया जाता है इसलिए विवाह में एक रस्म हल्दी की भी होती है।

घी के दिए जलाना-
दीपावली के समय हम अक्सर घरों की साफ़ सफाई करके दिये जलाते है और रौशनी करते है। दिए जलाने से केवल घर ही नहीं जीवन में भी प्रकाश होता है क्यूंकि दिए जलाने से सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है। घी का दिया कार्बोनडाईऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसों को समाप्त करता है। साथ ही तेल के दिए से हानिकारण कीटाणु भी समाप्त हो जाते है इसलिए वर्षा ऋतु के बाद दीपावली मनाई जाती है क्यूंकि वर्षा ऋतु के बाद कीट कीटाणु बढ़ जाते है।

दाह संस्कार का कारण-
शव को जलाना अंतिम संस्कार का सबसे स्वच्छ उपाय है क्यूंकि इससे भूमि प्रदूषण नहीं होता। साथ ही चिता की लकडियों के साथ घी व अन्य सामग्री प्रयोग की जाती है जिससे वायु शुद्ध होती है।

दाह संस्कार के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता भी नहीं पड़ती। एक ही स्थान पर कई दाह संस्कार किये जा सकते है। सनातन हिन्दू धर्म के साथ साथ जैन बोद्ध व् सिक्ख भी इसी प्रकार से दाह संस्कार करते है।

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