क्यों किया जाता है गौ दान और क्या है इसका धार्मिक महत्व

सनातन धर्म में गाय को माता की उपाधि दी गई है। इसके लिए गाय को गौ माता कहकर पुकारा जाता है। वेदों, पुराणों एवं शास्त्रों में गाय को धन बताया गया है। उत्तर वैदिक काल में गौ माता की सेवा का वर्णन विस्तार से किया गया है। भगवान श्रीकृष्ण को गाय अतिप्रिय है। द्वापर युग में ग्वालों के साथ भगवान श्रीकृष्ण वन जाते थे।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी गाय एक धन है। इसमें माता की ममता होती है। गाय से दुग्ध उत्पादन होता है। इसके लिए दुनियाभर के कई देशों में गाय पालन किया जाता है। वहीं, भारत में गौ सेवा, गौ पालन और गौ रक्षा पर विशेष बल दिया जाता है। शास्त्रों में गौ दान का उल्लेख भी निहित है। किदवंती है कि मृत्यु उपरांत व्यक्ति को वैतरणी नदी पार करना होता है। इस दौरान गौ दान करने वाले को वैतरणी नदी में गाय सहायता कर व्यक्ति को नदी पार कराती है। वहीं, जिस व्यक्ति ने गौ दान नहीं किया होता है। उसे वैतरणी नदी पार करने में कठिन पीड़ा होती है। इसके अलावा, गौ दान के कई अन्य लाभ भी हैं। आइए, गौ दान के बारे में विस्तार से जानते हैं-

  • ज्योतिषों की मानें तो नवग्रहों की शांति के लिए गौ दान जरूरी है। अतः नवग्रहों की शांति के लिए गौ दान जरूर करें।
  • मंगल के प्रभावी होने से व्यक्ति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे व्यक्ति के जीवन में अस्थिरता आ जाती है। ऐसी परिस्थिति में मंगल के प्रभाव को क्षीण या कम करने के लिए गौ दान करना चाहिए। इसके लिए लाल रंग की गाय का दान अवश्य करें।
  • ज्योतिषों की मानें तो शनि की ढैया और साढ़े साती लगने पर काले रंग की गाय का दान करना शुभ होता है। अतः शनि के कुप्रभाव से बचने के लिए गौ दान अवश्य करें।
  • सनातन धर्म में श्राद्ध कर्म के दौरान गौ दान करने की प्रथा है। इससे मृतक व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही वैतरणी नदी पार करने में सहायता मिलती है।

हमारे यहां शास्त्रों में गाय की अनंत महिमा है। वेदों में, पुराणों में, इतिहास में जहां भी देखिए, गाय से बढ़कर कोई द्रव्य नहीं है। त्रिवेणी के जल में डूब कर महर्षि तप कर रहे थे। मल्लाहों की मछलियों के साथ जाल में वे भी फस गए। मल्हा छोड़ना चाहते थे। ऋषि कहते थे- मुझे भी मछलियों के साथ बेच दो। झगड़ा बढ़ा और राजा के यहां गया। राजा ने ऋषि का मूल्य देना चाहा लाख, 2 लाख, आधा राज्य, पूरा राज्य- जो भी मूल्य वे देते। ऋषि कुद्र होते जाते। क्या मेरा मूल्य एक देश का राज्य ही है? राजा घबराए। अंत में एक गाय सामने खड़ी की। ऋषि हंस पड़े और बोले- मैं हार गया, तुम जीते; गाय के एक रोमके बराबर भी मेरा मूल्य नहीं है। त्रिलोक्य में गाय से बढ़कर कोई मूल्यवान चीज नहीं है।

दान देने से पुण्य कर्मों में वृद्धि होती है और दान का फल आपको केवल इस जन्म ही नहीं बल्कि कई जन्मों तक भी मिलता है. यहां तक कि मरने के बाद भी दिए गए दान का फल प्राप्त होता है और स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है वहीं दान करने से भगवान भी प्रसन्न होते हैं. और गौदान तो महादान है “अमावस्या” के दिन किये गए गौदान गौसेवा का फल कई गुना और बढ़ जाता है.. गौमाताओं को कराया गया भोजन पितृलोक में सीधे पितरों को प्राप्त होता है, जिसको पाकर पितृ तृप्त होते हैं, और आशीर्वाद देते हैं जिसके फलस्वरूप घर मे सुख शांति धन वैभव संतान सुख पुत्र प्राप्ति वंश में वृद्धि होती है। इसलिए साधु संत कहते हैं अमावश्या के दिन गौसेवा गौमाताओं के निमित्त कुछ न कुछ दान अवश्य करें.. और आज तो स्नान दान के लिए अति विशेष “कार्तिक मास” की “कार्तिक अमावस्या” है जिसमे गौमाताओं को दिया गया भोजन “गौग्रास” उनके निमित्त दी गयी सेवा दान सीधे पितरों को प्राप्त होता है और पितृलोक प्रस्थान करते हुए पितृ प्रश्नन होकर अपने परिवारी जनों को आशीर्वाद देते हुए जाते हैं.. इसलिए मेरा ग्रुप के सभी आदरणीय सदस्यों से निवेदन है आज सनातन संस्कृति के अनुपम उदात्त पर्व पंच दिवसीय दीपमालिका (दीपोत्सव) का भी शुभअवसर है आज के दिन गौसेवा के निमित्त अपनी सामर्थ्य अनुसार कुछ न कुछ अवश्य सहयोग करें..गौमाता के साथ माँ लक्ष्मी भी सदैव आप पर सर्वविध आनंद वृष्टि करती रहेगी..

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