दिल्ली की गुड़िया के नाम…
सीखनी थी अभी जिसे अस्मिता की परिभाषा.
उसकी अस्मिता को तार-तार करके छोड़ा है..
तन में साँसे अब चले भी तो क्या है.
मन से तो उसको पूरा मार करके छोड़ा है.
समझोगे क्या उसकी पीड़ा खून के भी आँसू रो के.
जिस गुड़िया को नोचा बलात्कार करके छोड़ा है..
मां भारती की संस्कृति पे लगा एक और दाग.
एक भेड़िए ने मासूम शिकार करके छोड़ा है..
बिलख उठा है कोना-कोना हिन्दुस्तान का.
दरिंदगी की सारी हदे पार करके छोड़ा है..
अब किधर लगाए वो बेबस बाप अर्ज़ी.
रक्षको ने भी तो उसपे वार करके छोड़ा है..
समाधान की एक कोशिश आपकी समीक्षा के हवाले….
इससे पहले फैले आग जागो हिंदुस्तानियों.
न बढ़ते वहशीपन का विस्तार होना चाहिए..
सजग सतर्क और समाज मे शालीनता.
अश्लीलता से दूर घर-बार होना चाहिए..
जवाब करारा हर जुर्म को देने के लिए.
संगठन सदा अपना तैयार होना चाहिए..
बच्चो को सिखाएं मर्यादा इस जीवन की.
अनुशासन ये सबको स्वीकार होना चाहिए..
फिर भी दरिंदगी पनपे यदि समाज में.
तो तुरंत वहशी का अंतिम संस्कार होना चाहिए..
तो तुरंत वहशी का अंतिम संस्कार होना चाहिए..
Author: Atul Jain Surana (अतुल जैन सुराना)