विभिन्न धर्मों में माँ का अस्तित्व

दुनिया के सभी मज़हबों में माँ को बहुत अहमियत दी गई है, क्योंकि माँ के दम से ही तो हमारा वजूद है। ख़ुदा ने जब कायनात की तामीर कर इंसान को ज़मीं पर बसाने का तसव्वुर किया होगा, तो यक़ीनन उस वक़्त मां का अक्स भी उसके ज़ेहन में उभर आया होगा। जिस तरह सूरज से यह कायनात रौशन है। ठीक उसी तरह माँ से इंसान की ज़िन्दगी में उजाला बिखरा हुआ है। तपती-झुलसा देने वाली गर्मी में दरख़्त की शीतल छांव है माँ, तो बर्फ़ीली सर्दियों में गुनगुनी धूप का अहसास है मां। एक ऐसी दुआ है मां, जो अपने बच्चों को हर मुसीबत से बचाती है। मां, जिसकी कोख से इंसानियत जनमी। जिसके आंचल में कायनात समा जाए। जिसकी छुअन से दुख-दर्द दूर हो जाएं। जिसके होठों पर दुआएं हों। जिसके दिल में ममता हो और आंखों में औलाद के लिए इंद्रधनुषी सपने सजे हों। ऐसी ही होती है माँ। बिल्कुल ईश्वर के प्रतिरूप जैसी। ख़ुदा के बाद माँ ही इंसान के सबसे ज़्यादा क़रीब होती है।

इसीलिए सभी नस्लों में माँ को बहुत अहमियत दी गई है। इस्लाम में माँ का दर्जा बहुत ऊंचा है। क़ुरआन करीम की सूरह अल अहक़ाफ़ में अल्लाह तआला फ़रमाता है कि हमने इंसान को अपने मां-बाप के साथ अच्छा बर्ताव करने की ताकीद की है। उसकी माँ ने उसे तकलीफ़ के साथ उठाए रखा और उसे तकलीफ़ के साथ जन्म भी दिया। उसके गर्भ में पलने और दूध छुड़ाने में तीस माह लग गए। अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सलल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि माँ के क़दमों के नीचे जन्नत है। आप सलल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने एक हदीस में इरशाद फ़रमाया है कि मैं वसीयत करता हूं कि इंसान को माँ के बारे में कि वह उसके साथ नेक बर्ताव करे।

एक अन्य हदीस के मुताबिक़ एक शख़्स अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया और सवाल किया कि ऐ अल्लाह के नबी! मेरे अच्छे बर्ताव का सबसे ज़्यादा हक़दार कौन है? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “तुम्हारी माँ.” उसने कहा कि फिर कौन? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “तुम्हारी माँ.” उसने कहा कि फिर कौन? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “तुम्हारी माँ.” उसने कहा कि फिर कौन? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “तुम्हारा वालिद. फिर तुम्हारे क़रीबी रिश्तेदार।”

यानी इस्लाम में माँ को पिता से तीन गुना ज़्यादा अहमियत दी गई है। इस्लाम में जन्म देने वाली माँ के साथ-साथ दूध पिलाने और परवरिश करने वाली माँ को भी ऊंचा दर्जा दिया गया है। इस्लाम में इबादत के साथ ही अपनी माँ के साथ नेक बर्ताव करने और उसकी ख़िदमत करने का भी हुक्म दिया गया है। कहा जाता है कि जब तक माँ अपने बच्चों को दूध नहीं बख़्शती, तब तक उनके गुनाह भी माफ़ नहीं होते।

यहूदियों में भी माँ को सम्मान की नज़र से देखा जाता है। उनकी दीनी मान्यता के मुताबिक़ कुल 55 पैग़म्बर हुए हैं, जिनमें सात महिलाएं थीं। ईसाइयों में भी माँ को उच्च स्थान हासिल है। इस मज़हब में यीशु की माँ मदर मैरी को बहुत बड़ा रुतबा हासिल है। गिरजाघरों में ईसा मसीह के अलावा मदर मैरी की प्रतिमाएं भी विराजमान रहती हैं। यूरोपीय देशों में मदरिंग संडे मनाया जाता है। दुनिया के अन्य देशों में भी मदर डे यानी मातृ दिवस मनाने की परम्परा है। भारत में मई के दूसरे रविवार को मातृ दिवस मनाया जाता है। चीन में दार्शनिक मेंग जाई की माँ के जन्मदिन को मातृ दिवस के तौर पर मनाया जाता है, तो इज़राईल में हेनेरिता जोल के जन्मदिवस को मातृ दिवस के रूप में मनाकर माँ के प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है। हेनेरिता ने जर्मन नाज़ियों से यहूदियों की रक्षा की थी। अमेरिका में मई के दूसरे रविवार को मदर डे मनाया जाता है। इस दिन मदर डे के लिए संघर्ष करने वाली अन्ना जार्विस को अपनी मुहिम में कामयाबी मिली थी। इंडोनेशिया में 22 दिसम्बर को मातृ दिवस मनाया जाता है। भारत में भी मदर डे पर उत्साह देखा जाता है। नेपाल में वैशाख के कृष्ण पक्ष में माता तीर्थ उत्सव मनाया जाता है।

भारत में माँ को शक्ति का रूप माना गया है। हिन्दू धर्म में देवियों को माँ कहकर पुकारा जाता है। धन की देवी लक्ष्मी, ज्ञान की देवी सरस्वती और शक्ति की देवी दुर्गा को माना जाता है। नवरात्रों में माँ के विभिन्न स्वरूपों की पूजा-अर्चना का विधान है। वेदों में माँ को पूजनीय कहा गया है। महर्षि मनु कहते हैं कि दस उपाध्यायों के बराबर एक आचार्या होता है, सौ आचार्यों के बराबर एक पिता होता है और एक हज़ार पिताओं से अधिक गौरवपूर्ण माँ होती है। तैतृयोपनिशद्‌ में कहा गया है-मातृ देवो भव:। इसी तरह जब यक्ष ने युधिष्ठर से सवाल किया कि भूमि से भारी कौन है तो उन्होंने जवाब दिया कि माता गुरुतरा भूमे: यानी मां इस भूमि से भी कहीं अधिक भारी होती है। रामायण में राम कहते हैं कि जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी यानी जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। बौद्ध धर्म में महात्मा बुद्ध के स्त्री रूप में देवी तारा की महिमा का गुणगान किया जाता है।

माँ बच्चे को नौ माह अपनी कोख में रखती है। प्रसव पीड़ा सहकर उसे इस संसार में लाती है। सारी-सारी रात जागकर उसे सुख की नींद सुलाती है। हम अनेक जनम लेकर भी माँ की कृतज्ञता प्रकट नहीं कर सकते। माँ की ममता असीम है, अनंत है और अपरंपार है। माँ और उसके बच्चों का रिश्ता अटूट है। माँ बच्चे की पहली गुरु होती है। उसकी छांव तले पलकर ही बच्चा एक ताक़तवर इंसान बनता है। हर व्यक्ति अपनी माँ से भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है। वो कितना ही बड़ा क्यों न हो जाए, लेकिन अपनी माँ के लिए वो हमेशा उसका छोटा-सा बच्चा ही रहता है। माँ अपना सर्वस्व अपने बच्चों पर न्यौछावर करने के लिए हमेशा तत्पर रहती है। माँ बनकर ही हर महिला ख़ुद को पूर्ण मानती है।

कहते हैं कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम बहुत तेज़ घुड़सवारी किया करते थे। एक दिन अल्लाह ने उनसे फ़रमाया कि अब ध्यान से घुड़सवारी किया करो। जब उन्होंने इसकी वजह पूछी तो जवाब मिला कि अब तुम्हारे लिए दुआ मांगने वाली तुम्हारी माँ ज़िन्दा नहीं है। जब तक वो ज़िन्दा रहीं उनकी दुआएं तुम्हें बचाती रहीं, मगर उन दुआओं का साया तुम्हारे सर से उठ चुका है। सच, माँ इस दुनिया में बच्चों के लिए ईश्वर का ही प्रतिरूप है, जिसकी दुआएं उसे हर बला से महफ़ूज़ रखती हैं। माँ को लाखों सलाम। दुनिया की सभी माओं को समर्पित हमारा एक शेअर पेश है-

क़दमों को माँ के इश्क़ ने सर पे उठा लिया
साअत सईद दोश पे फ़िरदौस आ गई
लेख़क :- फ़िरदौस ख़ान

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