देव दीपावली

जानिए इस दिन देवता क्यों मनाते हैं दिवाली..?
देव दीपावली, जिसे देव दिवाली या “देवताओं की दिवाली” भी कहा जाता है, भारत के सबसे प्राचीन और पवित्र नगरों में से एक, वाराणसी में मनाया जाने वाला एक अद्वितीय और दिव्य पर्व है। यह पर्व कार्तिक पूर्णिमा की रात को मनाया जाता है, जो मुख्य दिवाली के लगभग 15 दिन बाद आता है।

इस पर्व का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है और इस दौरान गंगा के किनारे हजारों दीप जलाकर असुरों पर देवताओं की विजय का उत्सव मनाया जाता है, जो अंधकार पर प्रकाश की और अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है।

कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
सनातन धर्म में कार्तिक माह और पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व होता है। कार्तिक माह में गंगा स्नान और भगवान विष्णु की आराधना का विशेष महत्व होता है। शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने का बहुत महत्व बताया गया है। इस दिन गंगा स्नान करने से पूरे वर्ष गंगा स्नान करने का फल मिलता है। इस दिन दीप-दान और मां लक्ष्मी की विशेष रूप से पूजा करने पर शुभ फलों की प्राप्ति में वृद्धि होती है। कार्तिक पूर्णिमा पर भगवान विष्णु के रूप में मत्स्य अवतार हुआ था, मत्स्य अवतार को भगवान विष्णु के दस अवतारों में पहला अवतार माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा का सिख धर्म में भी विशेष महत्व है, क्योंकि इसी दिन गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था। सिख धर्म में इसे गुरु पर्व के रूप में मनाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा पर गुरुद्वारों में विशेष पूजा-पाठ और लंगर का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा ऐसी भी धार्मिक मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर ब्रह्राा जी का अवतरण पुष्कर के पवित्र नदी में हुआ था। इस कारण हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर लाखों लोग पुष्कर नदी में स्नान, पूजा-पाठ और दीपदान करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने का बहुत महत्व बताया गया है। इस दिन गंगा स्नान करने से पूरे वर्ष गंगा स्नान करने का फल मिलता है।

दिवाली और देव दीपावली: दोपर्वों का अद्वितीय महत्व..
यद्यपि दिवाली और देव दीपावली दोनों ही हिंदू धर्म के अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व हैं, परंतु इनके आयोजन, थीम और रीति-रिवाजों में कई भिन्नताएं हैं। दिवाली अमावस्या की रात को मनाई जाती है और इसका संबंध भगवान राम की अयोध्या वापसी से है, जो रावण पर विजय का प्रतीक है।

दूसरी ओर, देव दीपावली कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है और इसका संबंध भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर पर विजय प्राप्त करने से है। इसे त्रिपुरासुर पर भगवान शिव की विजय के रूप में मनाया जाता है, जिसमें भगवान शिव को “त्रिपुरारी” कहा जाता है।

अर्थात् :- तीन राक्षसों के नगरों के संहारक। दिवाली में मुख्य रूप से लक्ष्मी माता की पूजा होती है जो धन और समृद्धि की देवी हैं। जबकि देव दीपावली में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व होता है, जिसमें उनके दिव्य रूप को मान्यता और सम्मान दिया जाता है।

देव दीपावली के विशेष रीति-रिवाज और परंपराएं..
देव दीपावली के इस विशेष पर्व में गंगा के घाटों पर हजारों मिट्टी के दीपक जलाने का विशेष महत्व है। वाराणसी में गंगा के किनारे विभिन्न घाटों पर दीपों की रौशनी का यह दृश्य अत्यंत अलौकिक और दिव्य होता है।

मान्यता है कि इस दिन देवता स्वर्ग से धरती पर आते हैं और इन दीपों के प्रकाश में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। गंगा आरती के दौरान विशेष प्रार्थनाएं और भगवान शिव का पूजन किया जाता है।

इस अवसर पर भक्त गंगा में स्नान करते हैं, जिसे आत्मशुद्धि का प्रतीक माना जाता है और अन्नदान का आयोजन करते हैं, जिसे पुण्य अर्जित करने का माध्यम माना जाता है।

वाराणसी में देव दीपावली का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व..
वाराणसी, जो कि हिंदू धर्म का अत्यंत पवित्र स्थल माना जाता है, देव दीपावली के उत्सव में अद्वितीय स्थान रखता है। यहाँ के घाटों पर जलाए गए हजारों दीपक वातावरण को एक अद्वितीय शांति और देवत्व प्रदान करते हैं, जो विश्व भर से आगंतुकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

धार्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ, इस पर्व के दौरान सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें संगीत और नृत्य जैसे प्रदर्शन होते हैं, जो उत्सव के आध्यात्मिक पक्ष को और अधिक सजीव बनाते हैं।

इस परंपरा का प्रारम्भ 1991 में दशाश्वमेध घाट पर हुआ था और तब से यह वार्षिक कार्यक्रम बन गया है, जो वाराणसी के समृद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को दुनिया के सामने प्रस्तुत करता है।

पौराणिक कथा और वैदिक संदर्भ..
देव दीपावली का पौराणिक संदर्भ भगवान शिव और त्रिपुरासुर के बीच हुए संघर्ष से जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथा के अनुसार:- त्रिपुरासुर तीन राक्षसों—विद्युनमाली, तारकाक्ष और वीर्यावन का सामूहिक नाम था, जिन्हें भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त था। इन राक्षसों ने तीन अभेद्य नगरों का निर्माण किया और देवताओं तथा पृथ्वी के लोगों को परेशान करना आरंभ कर दिया।

अंततः भगवान शिव ने त्रिपुरारी का रूप धारण कर एक ही बाण से उन तीनों नगरों का संहार किया और सृष्टि में शांति और संतुलन स्थापित किया।

इस विजय को देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है। यद्यपि प्राचीन ग्रंथों में इस उत्सव का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन इसके आधारभूत सिद्धांत वैदिक धर्म के मूल सिद्धांतों जैसे धर्म की विजय, अंधकार पर प्रकाश की विजय और ईश्वर के प्रति श्रद्धा के अनुरूप हैं।

देव दीपावली का अनुभव क्यों करें..?
जो लोग एक आध्यात्मिक यात्रा का अनुभव करना चाहते हैं, उनके लिए देव दीपावली एक अपूर्व अवसर प्रदान करता है, जो उन्हें भक्ति, प्रकाश और दिव्य उपस्थिति से परिपूर्ण करता है।

वाराणसी, जिसे गंगा नदी के साथ जुड़ा हुआ अत्यंत पवित्र शहर माना जाता है, देव दीपावली में एक विशिष्ट वातावरण निर्मित करता है जहाँ पुरातन परंपरा और आधुनिकता का संगम होता है। इस पर्व का अनोखा माहौल, जिसमें गंगा के शांत जल में हजारों दीपों की झिलमिलाहट होती है, सभी भक्तों और पर्यटकों को आत्मिक शांति और दिव्य अनुभव प्रदान करता है।

देव दीपावली, वाराणसी में मनाया जाने वाला एक पर्व मात्र नहीं, बल्कि एक ऐसा दिव्य अनुभव है जो हिंदू परंपराओं के आध्यात्मिक सार को दर्शाता है। यह भक्ति, प्रकाश, और धर्म की विजय का प्रतीक है, जो सभी भाग लेने वाले लोगों के हृदय में एक गहरी आध्यात्मिक अनुभूति जगाता है।

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