एक गांव में पारो नामक एक गरीब विधवा रहती थी।
उसका एक पुत्र था। वह इतनी गरीब थी कि घर में चार बर्तन भी ढ़ंग के नहीं थी।
लड़का अभी छोटा था। पारो ने बड़े प्यार से उसका नाम नसीब सिंह रखा था।
मगर वह इतना बदनसीब था कि उसके पैदा होने के कुछ समय बाद ही एक बिमारी से उसके पिता की मृत्यु हो गई।
पारो घरों में चौका-बर्तन आदि करके उसे पाल रही थी। उसे पक्का विश्वास था कि नसीब सिंह बड़ा हो कर उसके सारे संकट दूर कर देगा और उसका बुढ़ापा चैन से गुजरेगा।
इसी आस में रात-दिन मेहनत करके वह अपने बेटे को पाल रही थी।
नसीब सिंह था तो छोटा, किंतु समझदार बहुत था। संयम और धीरज की उसमें कमी न थी।
किसी भी बात को गहराई तक जानने की उसमें प्रबल उत्सुकता रहती थी।
एक दिन उसने अपनी माँ से पूछा—माँ ! हम इतने गरीब क्यों हैं ?
यह सब तो ईश्वर की मर्जी है बेटे। दुखी स्वर में पारो ने कहा—सब नसीब की बात है।
मगर नसीब सिंह यह उत्तर पाकर संतुष्ट नहीं हुआ। वह बोला—“ईश्वर की ऐसी मर्जी क्यों है”।
“बेटा यह तो ईश्वर ही जानें”।
अगर ईश्वर ही जानें तो ठीक है, मैं ईश्वर से ही पूछुंगा कि हम इतने गरीब क्यों हैं ?
बताओ माँ, बताओ कि ईश्वर कहां मिलेगा।
पारो तो वैसे ही परेशान रहती थी। अत: उसकी बातों से उकता कर उसने कह दिया—“वह जंगलों में रहता है, लेकिन तुम वहां न जाना”।
लेकिन नसीबसिंह ने दिल ही दिल में उसी क्षण इरादा बना लिया कि वह ईश्वर को ढ़ूंढ़ेगा और पूछेगा कि आखिर हम इतने गरीब क्यों हैं ?
एक दिन वह जंगल की ओर चल दिया। जंगल घना और भयानक था। चलते-चलते नसीब सिंह बुरी तरह थक गया, मगर भगवान की परछाई भी उसे दिखाई नहीं दी।
अत; वह थक-हार कर पत्थर की एक शिला पर जा बैठा और सोचने लगा कि भगवान तो यहां कहीं नहीं हैं। आखिर गरीबी दूर कैसे हो ?
तभी संयोग वश मृत्यु लोक का भ्रमण करते-करते शिव पार्वती उधर ही आ निकले।
उन्होंने बच्चे को वहाँ बैठे देखा तो उन्हें बड़ा अचरज हुआ कि यह अबोध बालक इस बीहड़ जंगल में बैठा क्या कर रहा है ?
भगवान शिव ने बालक से पूछा—“तुम कौन हो बालक और इस जंगल में बैठे क्या कर रहे हो”?
”मैं ईश्वर को ढ़ूंड़ रहा हूँ”।
”ईश्वर को”। पार्वती चौंकी और पूछा—“मगर क्यों ? ईश्वर से तुम्हे क्या काम है”।
”मैं उनसे पूछना चाहता हूँ कि हम इतने गरीब क्यों हैं, दूसरों की तरह हम पर भी भाग्य की कृपा क्यों नहीं है”? नशीब सिंह ने निर्भीकता से उत्तर दिया।
माँ पार्वती और भगवान शिव उस बच्चे का साहस देखकर बहुत प्रसन्न हुए। माँ पार्वती तो करुणा की सागर है।
उन्हें उस बच्चे पर बड़ी दया आयी और भगवान शिव से मुखातिब हो कर बोली—“प्रभु। इस बालक का कुछ कीजिए”।
”हम कुछ नहीं कर सकते पार्वती, क्योंकि इसके भाग्य में यही सब लिखा है।
भाग्यदेवता के लेख के अनुसार इसे ऐसा ही जीवन भोगना है”।
“नहीं-नहीं स्वामी आपको कुछ करना ही होगा”। माँ पार्वती हठ करने लगी।
”जिद न करो पार्वती। यदि हम उसे कुछ दे भी देंगे तो वह इसके पास नहीं रुकेगा। इसे वैसा ही जीवन जीने दो जैसा भाग्यदेव चाहते हैं”।
”नहीं प्रभु इसकी गरीबी दूर करने के लिए आपको इस पर कृपा करनी होगी”।
जब माँ पार्वती जिद करने लगी तो भगवान भोले शंकर ने बच्चे को एक हार दे दिया।
हार पाकर नसीब सिंह बहुत प्रसन्न हुआ और खुशी-खुशी अपने घर को चल दिया।
माँ पार्वती संतुष्ट थी कि उन्होंने एक अबोध बालक की मदद की और अब उसके दिन सुख से कटेंग़े…
लेकिन त्रिकालदर्शी भोले बाबा जानते थे कि यह हार उसके पास रहेगा ही नही।
चलते-चलते नसीब सिंह के पेट में अचानक दर्द उठा और वह शौच के लिए इधर-उधर देखने लगा।
उसने भगवान शिव का दिया हार पत्थर की एक शिला पर रख दिया और झाड़ियों के पीछे चला गया।
तभी एक चील कहीं से उड़ती हुई आई और उस हार को उठा कर उड़ गई।
“अरे…मेरा हार…”। सब कुछ भूल कर लड़का चील के पीछे भागा।
मगर कब तक वह चील का पीछा करता। कैसे पकड़ता उसे।
एकाध बार पत्थर उठा कर उसने चील को मारने की कोशिश की किंतु चील अधिक उंचाई पर थी।
कुछ ही पलों में चील उसकी नज़रों से ओझल हो गई तो वह बड़ा दुखी हुआ और रोते-रोते अपने घर की ओर चल दिया।
घर पहुंच कर उसने माँ को सारी बात बताई, मगर पारो को उसकी बात पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं हुआ। हाँ, उसकी बात सुनकर थोड़ी सी उदास अवश्य हो गई।
लेकिन नसीब सिंह माँ की उदासीनता देखकर हतोत्साहित नहीं हुआ।
उसने मन-ही-मन निर्णय लिया कि वह कल फिर वहीं जायेगा और भगवान शिव पार्वती को अपनी विपदा सुनायेगा।
उसका विश्वास था कि भगवान शिव उस धूर्त चील को अवश्य ही दंड़ देंगे।
भगवान शिव ने पार्वती से कहा—“देखो उसके पास कल वाला हार नहीं रहा, उसे एक चील ले उड़ी है और दूसरा हार पाने व उस चील को दण्ड़ दिलवाने की इच्छा लिए वह लड़का आज फिर आया है”।
पार्वती देवी ने फिर भगवान शिव से प्रार्थना की, आप चाहे चील को दण्ड़ दें या न दें, किंतु इस लड़के की सहायता करके इसकी निर्धनता दूर करें।
”हम अब कुछ नहीं कर सकते देवी। यदि तुम जिद करती हो तो हम ब्रह्मा से कहते हैं, वही इस बालक की कुछ सहायता करेंगे”।
कहकर भगवान शिव ने ब्रह्मा जी को बुलाया और सारी बात बता कर आग्रह किया कि आप ही इसकी कुछ मदद करें।
तब ब्रह्मा जी ने लड़के को हीरे की एक अंगूठी दे दी। लड़के ने अंगूठी जेब में रखी और खुशी-खुशी अपने घर चल दिया।
उसने सोच लिया था कि वह अब एक पल के लिए भी अंगूठी को अपने से अलग नहीं करेगा।
चलते-चलते अचानक उसे प्यास लगी। वह सरोवर के किनारे पहुंचा…
और जैसे ही वह चुल्लु भर कर पानी पीने के लिए झुका, वैसे ही उसकी जेब से अंगूठी निकल कर पानी में जा गिरी और इससे पहले कि वह उठाता, एक मछली उसे निगल गई।
नसीब सिंह फिर रोते-रोते घर आया और माँ को सारी बात बताई।
”बेटा! जब तक भाग्य में नहीं है, तब तक कोई भी चीज नहीं रुकेगी” माँ ने उसे दिलासा देते हुए कहा…
“जब भाग्य देवता खुश होंगे तो मिट्टी भी सोना बन जायेगी मगर इस प्रकार किसी के देने से हमारी गरीबी दूर नहीं होगी”।
उसे समझा कर माँ अपने काम में लग गई। मगर नसीब सिंह भी हार मानने वाला नहीं था।
उसने मन-ही-मन सोच लिया था कि वह कल फिर जायेगा। तीसरे दिन वह फिर जा पहुँचा।
शिव और पार्वती उसका यह साहस देखकर बहुत खुश हुए। शिव जी ने इस बार ब्रह्मा जी के पास जा कर बात की कि वह लड़का तो बड़ा साहसी है। इसका कुछ उद्धार किया जाना चाहिए।
तब ब्रह्मा जी ने सलाह दी कि हमें भगवान श्री हरी के पास जाना चाहिए। वही इसका कोई हल बतायेंगे।
अत: वह श्री हरी के पास जा पहुंचे। पूरी बात सुनकर भगवान विष्णु ने नसीब सिंह को कुछ हीरे दिये।
हीरे पा कर वह बहुत खुश हुआ और इस बार बिना कहीं रुके उसने सीधे अपने घर जाने का निश्चय किया, क्योंकि दो बार उसकी चीजे खो चुकी थी।
जब वह घर पहुंचा, माँ घर पर नहीं थी। अत: नसीब सिंह ने हीरे एक लोटे में रखकर कोने में छिपा दिये और माँ को ढ़ूंढ़ने निकल पड़ा।
वह मन-ही-मन सोचने लगा कि अब माँ को किसी के घर काम करने की क्या आवश्यकता है। अब तो वह भी अमीर बन गये हैं।
उधर पीछे से चोर उसके घर में घुसे और जो भी सामान हाथ लगा, लेकर भाग निकले। उस सामान में लोटा भी था, जिसमें हीरे रखे थे।
जब वह माँ के साथ वापिस आया तो देखा कि हीरे गायब थे। इतना ही नहीं, घर का दूसरा सामान भी गायब था।
अब तो उसकी माँ को बहुत गुस्सा आया, वह बोली—क्यों मुझे नईं-नईं कहानियाँ सुना कर पागल बनाता जा रहा है।
सारा दिन आवारा की तरह इधर-उधर भटकता रहता है और शाम को पिटाई के ड़र से कोई नयी कहानी सुना देता है।
माँ की ड़ांट सुन कर लड़का रोने लगा। वह तो केवल वही जानता था कि जो कुछ भी उसने बताया था, वह सत्य था।
ड़ांट खाकर लड़के की हिम्मत और बढ़ गई और अगले दिन वह फिर उसी स्थान पर जा पहुंचा।
भगवान भोले शंकर सोचने लगे कि इस पर इतनी मुसीबते पड़ी लेकिन इसने हिम्मत नहीं हारी।
इससे वह बहुत प्रसन्न हुए और भाग्य देवी के पास जा कर बोले—“यह लड़का बहुत ही साहसी, हिम्मती और धीरज वाला है, ऐसा व्यक्ति अभागा नहीं हो सकता। इसे कुछ दे दो”।
आज्ञा पाकर भाग्य की देवी ने नसीब सिंह को सोने का एक सिक्का दिया।
सिक्का ले कर नसीब सिंह खुशी-खुशी अपने घर को चल दिया।
जब उसने घर जा कर वह सिक्का अपनी माँ को दिया तो उसकी माँ बहुत खुश हुई। अब क्योंकि उन पर भाग्य देवी की कृपा हो गयी थी, अत: सारे काम ही अपने-आप शुभ होने लगे।
दूसरे दिन ही एक मछली वाला उसके गांव में मछली बेचने आया तो लड़के ने वही सिक्का देकर मछली खरीद ली।
उसकी माँ ने मछली का पेट चीरा तो वह अंगूठी निकली, जो ब्रह्मदेव ने उसे दी थी और जो उसकी जेब से तालाब में गिर गई थी।
माँ ने अंगूठी सम्भाल कर रख ली और नसीब सिंह से बोली—“जा बेटा, जंगल से थोड़ी लकड़ियां ले आ, आज घर में ईंधन बिल्कुल नहीं है”।
लड़का कुल्हाड़ी ले कर जंगल की ओर चल दिया।
वहाँ जा कर जिस पेड़ पर लकड़ी काटने के लिए चढ़ा, वहाँ उसी चील का घोसला था, जो उसका हार उठा कर ले गई थी।
लड़के ने देखा कि चील कहीं आस-पास नहीं थी। नसीब सिंह ने अपना हार उठा लिया और जो भी थोड़ी बहुत लकड़ियाँ पेड़ के आस-पास पड़ी थी, वही उठा कर घर की ओर चल दिया।
माँ हार पाकर बहुत खुश हुई।
अब तो देखते ही देखते उनके दिन बदल गये। घर में किसी चीज का अभाव नहीं रहा।
फिर ईश्वर की कुछ ऐसी करनी हुई कि जो चोर उसके घर से हीरे चुरा कर ले गये थे,
उन्हें सपने में महादेव ने चेतावनी दी कि जो हीरे उस लड़के के घर से चुरा कर लाये थे, वे तुरंत वापिस कर दो, वरना तुम्हारा सर्वनाश कर दूंगा।
चोर उसी दिन हीरे उसके घर पर दे गए और अपनी गलती के लिए माफी भी मांगी।
इस प्रकार उस अभागे का भाग्य चमक उठा, अब उसके घर में किसी चीज की कमी न थी और उनकी गरीबी सदा के लिए समाप्त हो गई।
एकादशी व्रत को सभी व्रतों का राजा क्यों कहते हैं ?
भगवान विष्णु को अत्यन्त प्रिय है एकादशी का व्रत। पूर्व काल में मुर दैत्य को मारने के लिए भगवान विष्णु के शरीर से एक कन्या प्रकट हुई जो विष्णु के…