रक्षा बंधन कथा

रक्षाबंधन का त्योहार सिर्फ लोक परंपरा का हिस्सा भर नहीं है, बल्कि इसके साथ कई पौराणिक कथाएं भी हैं। ऐसी ही एक कथा राजा बली, भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी से जुड़ी है। कहते हैं कि मां लक्ष्मी ने ही राजा बली को सबसे पहले राखी बांधी थी। तभी से रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा चली आ रही है।

येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वाम प्रतिबद्धनामि, रक्षे माचल माचलः ।।

ये मंत्र तो आपने सुना ही होगा। जी हां, जब भी रक्षा सूत्र बांधा जाता है, तो यह मंत्र जरूर पढ़ा जाता है।

बहनें जब भाइयों को राखी बांधती हैं, तब भी इस मंत्र का उच्चारण किया जाता है। क्या आप जानते हैं, यह मंत्र क्यों पढ़ा जाता है, इस मंत्र के पीछे की धार्मिक घटना क्या है? आइए रक्षा बंधन त्योहार के पवित्र मौके पर जानते हैं, इस मंत्र से रक्षा बंधन की कथा का क्या संबंध है और माता लक्ष्मी ने किसे राखी बांध कर भगवान विष्णु को मुक्त किया था?

एक बार दानवों और देवताओं में भीषण युद्ध छिड़ गया, जो बारह वर्षों तक चलता रहा। इस युद्ध में दानवों के राजा बलि ने देवताओं को पराजित कर इंद्र को स्वर्ग से बाहर कर दिया। राजा बलि भगवान विष्णु के महान भक्त प्रह्लाद जी के पोते थे।

राजा बलि स्वयं भी एक महान विष्णु उपासक थे। तीनों लोकों को जीतने के उपलक्ष्य में राजा बलि ने गुरु शुक्राचार्य के कहने पर विजय यज्ञ करवाया। उधर स्वर्ग विहीन हो कर इंद्र यहां-वहां भटक रहे थे। वे भगवान विष्णु के पास पहुंचे और बोले, “हे जनार्दन! यह स्वर्ग आपने हमें दिया था। हम देवता स्वर्ग के बिना कुछ भी नहीं हैं। हम शक्तिहीन और श्रीहीन हो गए हैं। हमारी व्यथा दूर करें प्रभो!”

भगवान विष्णु वामन रूप का अवतार लेकर राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंचे। यज्ञ समाप्ति पर उन्होंने राजा बलि से कहा, “हे दानवेंद्र बलि! मैं आपकी प्रशंसा सुनकर यहां आया हूं? क्या ये वामन आपके यज्ञ स्थल से खाली हाथ जाएगा?” तीनों लोकों को जीतने के बाद विष्णु भक्त राजा बलि में अहंकार आ गया था। अहंकार से भरे बलि ने वचन दिया कि वे जो चाहें, सो मांग सकते हैं।

इस पर विष्णुरूपी भगवान वामन ने राजा बलि से तीन पग जमीन मांगी। यह सुनकर यज्ञ स्थल पर उपस्थित सभी लोग हंसने लगे, सिवाय दैत्यगुरु शुक्राचार्य को छोड़ कर। उन्हें वामन पर संदेह हुआ। उन्होंने राजा बलि को यह दान देने से रोकना चाहा। लेकिन अहंकार से भरे बलि ने सोचा कि ये बौना 3 कदम (पग) में कितनी जमीन नाप पाएगा? उसने भगवान वामन से कहा, “हे वामन! आपकी जहां से इच्छा हो, वहां से अपनी तीन पग भूमि ले सकते हैं।

”राजा बलि के इतना कहते ही विष्णुरूपी भगवान वामन का आकार बढ़ना शुरू हो गया। उनके आकार ने अंतरिक्ष के छोर को छू लिया था। उन्होंने अपने दो पग में ही पृथ्वी, आकाश और ब्रह्मांड को नाप लिया था। उन्होंने राजा बलि से पूछा, “हे दानवेंद्र! अब मैं अपना तीसरा पांव कहां रखूं?” इस पर राजा बलि भगवान वामन को प्रणाम करते हुए कहा, “हे प्रभु! आप अपना तीसरा पग में मेरे सिर पर रखें.” भगवान वामन ने ऐसा ही किया और राजा बलि के सिर पर पांव रखकर उसे पाताल लोक भेज दिया।

भगवान हमेशा भक्त-वत्सल होते हैं। वे अपने अपने सच्चे भक्तों को पीड़ा में नहीं देख सकते हैं। भगवान ने बलि के अहंकार का दमन कर दिया था। उन्होंने बलि को पाताल का स्वामी बना दिया और बोले, “एक वरदान मांगो, दानवेंद्र बलि।” राजा बलि ने बड़ी चतुराई से भगवान से यह वचन ले लिया कि वह जब सोने जाए और उठे तो जिधर भी नजर जाए, उधर उसको भगवान विष्णु ही नजर आए। भगवान विष्णु अब वचनबद्ध थे।

अपनी भक्ति के बल पर राजा बलि सब कुछ हारकर भी जीत गए थे। भगवान विष्णु क्या करते, वे वचन दे चुके थे और इस तरह वे पाताल लोक में बलि के पहरेदार बन गए।

जगतपालक भगवान विष्णु को वामनावतार के बाद फिर वैकुंठ जाना था। लेकिन बहुत दिन हो गए, वैकुंठ के भगवान से रहित हो जाने एक कारण देवी लक्ष्मी चिंतित हो गईं। उन्होंने नारद जी से पूछा, “हे देवर्षि! आपका तो तीनों लोकों में आना-जाना है। हमारे शेषशय्याधारी भगवान कहां हैं, कहीं देखा आपने? तब नारदजी बोले, “हे देवी! नारायण प्रभु तो पाताल लोक में राजा बलि के पहरेदार बने हुए हैं।” फिर माता लक्ष्मी को उन्होंने भगवान को वहां से मुक्त कर वापस लाने का एक उपाय भी बताया।

तब देवी लक्ष्मी एक ब्राह्मण स्त्री के रूप में धरती पर उतरीं और राजा बलि के पास पहुंचीं। उन्होंने रोते हुए बलि से कहा, “हे राजन! मेरे पति एक काम से लंबे समय के लिए बाहर गए हैं। मेरा कोई भाई नहीं है, इसलिए मैं दुखी हूं। मुझे रहने के लिए जगह चाहिए।” राजा बलि ने उनका हृदय से स्वागत किया और अपनी धर्म-बहन के रूप में उनकी रक्षा की।

देवी लक्ष्मी के आगमन के बाद से बलि का पाताल लोक अचानक सुख, धन-धान्य, समृद्धि और ऐश्वर्य से खिल उठा।कुछ समय बाद, श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी ने बलि की कलाई पर रुई का रंगीन धागा बांधकर उसके रक्षा और सुख की प्रार्थना की। राजा बलि बेहद प्रसन्न हुए और उन्हें कुछ भी मांगने का आग्रह किया।

देवी लक्ष्मी ने तुरंत उनके बलि के सम्मुख रहने वाले पहरेदार-स्वरूप भगवान विष्णु की ओर इशारा किया कि मुझे आपका ये पहरेदार चाहिए। तब राजा बलि ने उन्हें अपना सही रूप दिखलाने का अनुरोध किया। मां लक्ष्मी अपने असली रूप में आई और राजा बलि की धर्म-परायणता की प्रशंसा की और आशीर्वाद दिया।

अपने वचन से बंधे होने से राजा बलि ने भगवान विष्णु को उन्हें वापस कर दिया। देवी लक्ष्मी अपने पति को साथ लेकर वैकुंठ आ गईं। जिस दिन यह घटना घटी थी, वह श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। कहते हैं, तभी से यह तिथि रक्षा बंधन के लिए शुभ माना गया है, जो बाद में जन-जन में लोकप्रिय हुआ। इसलिए आज भी बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं, उनकी लंबी उम्र और सुख की कामना करती है। बदलें में भाई अपनी बहन की रक्षा का वचन और उपहार आदि देते हैं।

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