मथुरा में एक संत रहते थे। उनके बहुत से शिष्य थे। उन्हीं में से एक सेठ जगतराम भी थे।
जगतराम का लंबा चौड़ा कारोबार था। वे कारोबार के सिलसिले में दूर दूर की यात्राएं किया करते थे।
एक बार वे कारोबार के सिलसिले में कन्नौज गये। कन्नौज अपने खुश्बूदार इत्रों के लिये प्रसिद्ध है।
उन्होंने इत्र की एक मंहगी शीशी संत को भेंट करने के लिये खरीदी।
सेठ जगतराम कुछ दिनों बाद काम खत्म होने पर वापस मथुरा लौटे। अगले दिन वे संत की कुटिया पर उनसे मिलने गये।
संत कुटिया में नहीं थे। पूछा तो जवाब मिला कि यमुना किनारे गये हैं, स्नान-ध्यान के लिये।
जगतराम घाट की तरफ चल दिये। देखा कि संत घुटने भर पानी में खड़े यमुना नदी में कुछ देख रहे हैं और मुस्कुरा रहे हैं।
तेज चाल से वे संत के नजदीक पहुंचे।
प्रणाम करके बोले आपके लिये कन्नौज से इत्र की शीशी लाया हूँ।
संत ने कहा लाओ दो। सेठ जगतराम ने इत्र की शीशी संत के हाथ में दे दी। संत ने तुरंत वह शीशी खोली और सारा इत्र यमुना में डाल दिया और मुस्कुराने लगे।
जगतराम यह दृश्य देख कर उदास हो गये और सोचा एक बार भी इत्र इस्तेमाल नहीं किया, सूंघा भी नहीं और पूरा इत्र यमुना में डाल दिया।
वे कुछ न बोले और उदास मन घर वापस लौट गये।
कई दिनों बाद जब उनकी उदासी कुछ कम हुई तो वे संत की कुटिया में उनके दर्शन के लिये गये।
संत कुटिया में अकेले आंखे मूंदे बैठे थे और भजन गुनगुना रहे थे।
आहट हुई तो सेठ को द्वार पर देखा। प्रसन्न होकर उन्हें पास बुलाया और कहा – ”उस दिन तुम्हारा इत्र बड़ा काम कर गया।
सेठ ने आश्चर्य से संत की तरफ देखा और पूछा “मैं कुछ समझा नहीं।
संत ने कहा- उस दिन यमुना में राधा जी और श्री कृष्ण की होली हो रही थी।
श्रीराधा जी ने श्रीकृष्ण के ऊपर रंग डालने के लिये जैसे ही बर्तन में पिचकारी डाली उसी समय मैंने तुम्हारा लाया इत्र बर्तन में डाल दिया।
सारा इत्र पिचकारी से रंग के साथ श्रीकृष्ण के शरीर पर चला गया और भगवान श्रीकृष्ण इत्र की महक से महकने लगे।
तुम्हारे लाये इत्र ने श्रीकृष्ण और श्रीराधा रानी की होली में एक नया रंग भर दिया। तुम्हारी वजह से मुझे भी श्रीकृष्ण और श्रीराधा रानी की कृपा प्राप्त हुई।
सेठ जगतराम आंखे फाड़े संत को देखते रहे। उनकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
संत ने सेठ की आंखों में अविश्वास की झलक देखी तो कहा शायद तुम्हें मेरी कही बात पर विश्वास नहीं हो रहा।
जाओ मथुरा के सभी श्रीकृष्ण राधा के मंदिरों के दर्शन कर आओ, फिर कुछ कहना।
सेठ जगतराम मथुरा में स्थित सभी श्रीकृष्ण राधा के मंदिरों में गये। उन्हें सभी मंदिरों में श्रीकृष्णराधा की मूर्ति से अपने इत्र की महक आती प्रतीत हुयी।
सेठ जगतराम का इत्र श्रीकृष्ण और श्रीराधा रानी ने स्वीकार कर लिया था।
वे संत की कुटिया में वापस लौटे और संत के चरणों में गिर पड़े।
सेठ की आंखों से आंसुओं की धार बह निकली। और उसे संत जी का अधिकार मालूम हुआ।
संत की आंखें भी प्रभु श्रीकृष्ण की याद में गीली हो गयीं।
सदैव ध्यान रहे कि संत महात्मा भले ही हमारे जैसे दिखते हों, रहते हों लेकिन वे हर वक्त ईश्वर में मन लगाये रहते हैं। हम जैसों के लिये यह अधिकार तब प्राप्त होगा जब हमारी भक्ति बढ़े, नाम सिमरन बढ़े।
जब हम परमात्मा से प्रेम करने लगते हैं तो कोई भी सांसारिक वस्तु इस लायक नहीं प्रतीत होती कि उससे प्रेम किया जाए। यदि एक बार ईश्वर सानिध्य का स्वाद चख लिया तो फिर उसे संसार की सभी वस्तुयें स्वत: ही बेजान और बेस्वाद लगने लगती हैं। तब सांसारिक सुख-दुख की घारणा मिट जाती है, तब हम परम-आनन्द को प्राप्त कर सभी प्रकार से मुक्त हो जाते हैं।
जैसे पनिहारिन पानी से भरी मटकी-एक दो तीन या इससे अधिक भी लेकर चलती है, हाथ भी नहीं लगाती, बातें भी करती चलती है, गुनगुनाती गीत गाती,मार्ग का ध्यान रखती भी चलती है, ऊपर से पूर्णत: बेफिक्र सी चलती है, किन्तु उसका पूर्ण ध्यान अपने मटकों पर ही केन्द्रित होता है और उसका यही केन्द्रित ध्यान उसके मटकों को सम्भाले रखता है। अन्य समस्त कार्य करते हुये भी उसकी पूरी सुधि अपने मटकों पर केन्द्रित है।
इसी प्रकार जैसे एक माँ का पूर्ण ध्यान अपने बच्चे पर केन्द्रित होता है। रात में नींद में भी उसे ध्यान है कि छोटा बच्चा है, नींद में प्रेम वात्सल्य की डोर बँधी हुई है। आँधी तूफान आयें, बिजली कड़के बादल घुमड़े नींद नहीं टूटती, किन्तु बच्चा तनिक सा कुनमुनाया कि झट माँ की आँख खुल जाती हैं।नींद में भी बच्चे की भूख की सुधि है। अटूट सुधि की एक डोर बँधी हुई है।
एक सच्चा भक्त पनिहारिन व माँ की भाँति इस संसार में रहता है। समस्त सांसारिक कार्य करते हुये भी उसका पूर्ण ध्यान, उसकी पूर्ण सुधि अपने परमात्मा में ही लगी रहती है। शरीर से भक्त संसार में रहता है, किन्तु ध्यान परमात्मा में रहता है। ऐसे साधक को प्रभु न मिले ऐसा कैसे हो सकता है वो तो खुद ऐसे भक्त के पीछे पीछे दौड़ता है ।
हे साँवरे, चुपके से आकर तुम मेरे दिल में उतर जाते हो
मेरी साँसों में मधुवन की खुश्बू बनकर बिखर जाते हो,
कुछ यूँ चला तेरे इश्क़ का जादू मेरे प्रियतम, मेरे कान्हा,
हर पल, आठों पहर बस केवल तुम ही तुम नज़र आते हो