जनता ने झाड़ू फेर दी

भेरू दादा सुबे-सुबे मिली गया। म्हारा से हात मिलायो तो केने लगिया बाबू दादा, तम भोत ठंडा हुई रया हो। म्हने उनके टोकियो कि दादा, म्हारा हात ठंडा हुई रया हे, हूं ठंडो नी हुओ हूँ। कदी कदी मनख का बोलना में बी अर्थ को अनर्थ हुई जाय हे।व से ठंडो होने को मतलब यो बी हे कि मनख की सक्रियता अब खतम हुई गई हे ने वो किना काम को नी रयो। यने ठंडा गार हुई गया। दिल्ली वाला दादा बी ठंडा साबित हुआ।वे था तो पेला सेज ठंडा, पण अपना के गरम बताता रया। वसे बी दिल्ली में ठंड थोड़ी जादा पड़े हे, एका वास्ते इनी ठंड में उनकी गरमी इनी बार निकली गई। तीन बार तो मफलर, टोपी ने उनके बचई लियो पण इनी बार जनता की गरमी ने उनके बायर कर दियो। यने ठंड तो उनके सेन हुई गई, पण जनता की गरमी ने भरी ठंड में उनका पसीना हेड दिया।नकलीपनो जादा दन चले नी। अचरज की बात तो या हे कि दिल्ली जसी जगे उनको नकलीपनो इत्तो लंबो हेंचई गयो। अबे लोगना माथो कूटी रया कि हमारी बुद्धि पे कजन कंई परदो पड़ी गयो थो, जो हम इका चाला में अई गया। राजनीति के साफ करने आयो थो, पण खुद के इत्तो सुगलो कर लियो कि लोगना के झाड़ू फेरनी पड़ी साफ-सफई वास्ते। उकीज झाड़ू से उकाज कचरा के कोना में ओटी दियो। झोपड़ी को उद्धार करने आयो थो पण शीशमहल का नाद में लगी गयो। दादा, हम तो छोटी सी मोरी में बठी के दो चार लोटा में न्हई-धोई लाँ। तम कोनसा सोना का बनिया हो, जो खुद का न्हाने वास्ते करोड़ रुपिया खरचा कर दिया। बात तो बड़ी-बड़ी करतो था कि हूं तो दो कमरा में रई लउँगा, आम आदमी सरीको। पण तमारा दाँत दिखाने का ओर ने खाने का ओर निकलिया। लोगना को मुंडो बंद करने वास्ते रेवड़ी बाँटतो रया ने दूसरा के बी रेवड़ी को चालो लगई दियो।केजरीवाल जी तम तो राजनीति का शातिर खिलाड़ी निकलिया। लोगना ने तमसे आस लगय, ने तमने अपना अहंकार ने मोह से उनी आस के तोड़ दियो।अपना गुरु ने साथी होन की छाती पे चढ़ी के तम सत्ता तक पोची गया। सत्ता सुंदरी का मोह से तम बी बची नी पाया।जिनके गाली देता रया, कुरसी वास्ते उनका ज गले लगी गया। तम झूठ बोली-बोली ने जीतता गया ने साते-साते तमारो अहंकार बी बड़तो गयो। तम बड़बोला हुई गया। ताल ठोंकने लगिया कि इना जनम में तो म्हारे तम हरई नी सकता, तमारे अगलो जनम लेनो पड़ेगो। पण दादा यां का करम यांज भोगना पड़े lतम जेल बी गया, तो तमारा पट्ठा होन के खड़ऊ रखी ने राज करने वास्ते आगे कर दियो। अति को अंत होय हे, आज नी तो कल।लोगना का आँख पे बंधी पट्टी कदी ने कदी तो खुलेज हे। बस दिल्लीवाला होन की पट्टी उतरी गई ने तम गद्दी से उतरी गया।अबे तम आम आदमी हो।
लेख़क : रजनीश दवे

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