गुनाहों के आसमान से,
आज अंधेरों की बारिश है !
ज़ख्म से तड़पते उजालों की,
मुसलसल रहम की गुजारिश है !!
सरपरस्त बने कातिलों की,
बहुत ही बेरहम ख्वाहिश है !
कि अब हिंद के ज़र्रे-ज़र्रे में,
अब ज़ुल्म की आज़माइश है !!
बेगुनाहों की खुदा से मुसलसल,
एक सहमी हुई सी फरमाइश है !
गुनाहों के दलदल में धंसे हिंद में,
दे दो सुकूनो-चैन अगर कहीं गुंजाइश है !!
Author: अनिल महेश्वरी