ऐ माँ तुम्हे मै क्या दू…
तन समर्पित मन समर्पित,
जीवन का हर छन समर्पित
सोचता हु ऐ माँ तुझे और क्या दूँ …
छीर सिन्धु के तेरे अमृत ने,
पोषित किया मेरा ये जीवन
तेरे आँचल से महंगा कोइ वस्त्र नहीं,
ढक ले जो सारा तन
तेरे ममता के सागर सा,
प्यार नहीं पाया कभी
ये मन त्याग रत्न के भंडारे में तेरे,
मै हु बस एक भिखारी
सोचता हु ऐ माँ तुझे मै क्या दूँ …
पकड़ के मेरी नन्ही उंगली,
तुमने ही चलना सिखाया करके पैरो की मालिश,
चलने के काबिल बनाया…
काला टीका लगा के सर पर,
दुनिया की नजरो से बचाया
कष्ट सहे कितने पर,
गोंद से अपने ना कभी हटाया
अब दुनिया के दस्तूर बदल गए,
पर कोई बदल ना तुमको पाया
चुका ना पाउ कभी भी,
ऐसा है एहसान तुम्हारा सोचता हु फिर भी,
ऐ माँ तुम्हे मै क्या दू…
Author: Govind Gupta (गोविंद गुप्ता)