मैं भावनाओ में बह जाना चाहता था ,
पता नहीं भावनाओं का बहाव
कब रूद्र से रौद्र हो गया
और मैं बहता गया बहता गया
ठोकरें खाते खाते
किसी पत्थर के बीच
थम गयी मेरी फंसी हुई
बहती हुई भावनाएं
फूल गयी सांस ही नहीं
यह शरीर भी .
साथ चले बहुत से रिश्ते
कुछ दूर रह गए , कुछ दूर हो गए
फिर भी कोई रंज शिकवा नहीं
शायद मेरा मोक्ष
द्वार पर इंतज़ार कर रहा है…
इंसान सिमट गए पैसों में
खो गईं वो चिठ्ठियाँ जिसमें “लिखने के सलीके” छुपे होते थे, “कुशलता” की कामना से शुरू होते थे। बडों के “चरण स्पर्श” पर खत्म होते थे…!! “और बीच में लिखी…