क्या सचमुच ‘मैं’ ‘वह’ नहीं हूँ , जो ‘मैं’ हूँ ?
शाम की गो-धूलि वेला में …. जब कर रही थी जुगलबंदी घर लौट रही गायों के गले में बंधी घंटियों की रुन-झुन मंदिरों की आरती में बज रही घंटियों के…
वह नन्हा पंछी
बूढ़े पेड़ के पास का पोखर सूखा था कल तक , रात के सन्नाटे में सुनकर पुकार दर्द से विव्हल पंछी की चाँद के आँसू बहे जब ओस बनकर सुबह…
''छोटी-सी प्यारी-सी नन्ही-सी बिटिया''
रह-रह कर याद आती है वह छोटी-सी प्यारी-सी नन्ही-सी बिटिया बहुत, बार-बार…. मन-ही-मन मुसकराने वाली सारी दुनिया से न्यारी वह कोमल-सी छुटकी-सी फूलों-सी बिटिया. प्रश्न उठता है यह बार-बार क्यों…
”छोटी-सी प्यारी-सी नन्ही-सी बिटिया”
रह-रह कर याद आती है वह छोटी-सी प्यारी-सी नन्ही-सी बिटिया बहुत, बार-बार…. मन-ही-मन मुसकराने वाली सारी दुनिया से न्यारी वह कोमल-सी छुटकी-सी फूलों-सी बिटिया. प्रश्न उठता है यह बार-बार क्यों…
''भोलापन तेरी आँखों का''
भोलापन तेरी आँखों का , क्यूँ उतर-उतर आता है तेरे रस-भीगे ओंठों में, शब्द जो निकलना चाहते हैं… सकुचाकर दबे-दबे से क्यों ठहर-ठहर जाते हैं, रह जाते हैं मेरे मनोभाव…
”भोलापन तेरी आँखों का”
भोलापन तेरी आँखों का , क्यूँ उतर-उतर आता है तेरे रस-भीगे ओंठों में, शब्द जो निकलना चाहते हैं… सकुचाकर दबे-दबे से क्यों ठहर-ठहर जाते हैं, रह जाते हैं मेरे मनोभाव…
वह 'लड़की' याद आती है
उम्र की इस दहलीज पर जब देखकर हमें आईना भी बनाता है अपना मुँह, कुछ शरमाकर , कुछ इठलाकर मुसकराती-सी वह लड़की याद आती है …. जब हम भी थे…
वह ‘लड़की’ याद आती है
उम्र की इस दहलीज पर जब देखकर हमें आईना भी बनाता है अपना मुँह, कुछ शरमाकर , कुछ इठलाकर मुसकराती-सी वह लड़की याद आती है …. जब हम भी थे…
फिर याद आ गए तुम
तारों के झिलमिलाते आँगन में अम्बर के अंतहीन ह्रदय में अंकित पूर्णिमा का चाँद देखते ही एक बार फिर याद आ गए तुम —- युगल पंछियों का नीड़ की ओर…
मेरे अश्क़
मेरे अश्क़ !! बातूनी हैं बहुत तन्हाइयों में सखियों सी बेहिसाब बातें करते हैं—- मेरे अश्क़ !! हताशा का रुख मोड़ अपनेपन से मुस्कुराकर मिलते हैं—- मेरे अश्क़ !! पारदर्शी…